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पुद्गल द्रव्य
233 नासिका में दो घ्राण क्षेत्र होते हैं। प्रत्येक घ्राण क्षेत्र पीले वर्ण का एक वर्ग इंच के आकार वाला होता है, जिसमें करोड़ों छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। पदार्थों को गंधवाही अणु उठते हैं वे घ्राण क्षेत्र के छिद्रों में प्रविष्ट होते हैं। घ्राण क्षेत्र में 'ट्राइजिमाइनस नर्व' और 'आलफैक्टरी नर्व' के दो प्रकार के तंत्रिका सूत्र होते हैं, जो गंधवाही अणुओं को अलग-अलग पहचानते हैं। प्रत्येक सूत्र के सिरे पर एक घ्राण कोशिका होती है और घ्राण कोशिका के सिरे पर अत्यंत सूक्ष्म रोम-समूह होता है। ये रोम गंध का संदेश तंत्रिका-सूत्र को, तंत्रिका-सूत्र घ्राण केन्द्रों को और घ्राण केन्द्र वही संदेश मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं। इस प्रकार प्राणी को गंध की अनुभूति होती है।
___ गंध के कण-गंध के कण विशेष प्रकार के होते हैं जो वायु के साथ नाक में पहुंचते हैं। ये कण बड़े अद्भुत होते हैं। अल्कोहल में इतना जल मिला दिया जाय कि चखने पर उसमें और जल में कोई अंतर ही मालूम न पड़े, फिर अल्कोहल में पच्चीस हजार गुना जल और मिला दिया जाय तब भी सूंघने पर पता चल जाता है कि शुद्ध जल कौन-सा है और अल्कोहल मिला जल कौन-सा है। इसका कारण है गंध के कण सांस के साथ आलफैक्टरी परदे पर स्थित अत्यंत महीन बालों तक पहुँचते हैं। इन बालों की जड़ों में बहुत संवेदनशील नाड़ी तंत्र होते हैं। गंध के कण इन्हीं तंत्रों द्वारा पहचाने जाते हैं। हर समय न जाने कितनी तरह के पदार्थों के गंध के कण हमारी सांस के साथ नाक में आते रहते हैं लेकिन कार्य में व्यस्त रहने के कारण हमें उनका पता नहीं चलता है, लेकिन जब हम ध्यान से सूंघने की विशेष चेष्टा करते हैं तो नाक के भीतर सूंघने वाले परदे के आस-पास का मार्ग सिकुड़ जाता है। इससे वहाँ से गुजरने वाली सांस परदे के साथ ज्यादा घर्षण करती है और हमें गंध का स्पष्ट अनुभव हो जाता है।