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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य चित्रांकन किया जाता है। चित्र छाप लेना उसी का संभव है जो अस्तित्वमान पौद्गलिक पदार्थ हो। इलेक्ट्रॉनिक संगीत यंत्र में ध्वनियों को छाना जाता है। छानने की क्रिया उसी में संभव है जो पौद्गलिक पदार्थ है। अतः शब्द या ध्वनि पुद्गल की ही पर्याय है अर्थात् एक अवस्था विशेष है। यह विलक्षण मान्यता एकमात्र जैनदर्शन में थी और इसे आज विज्ञान ने प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया है।
तीन प्रकार के शब्द-जैनदर्शन में शब्द के तीन प्रकार कहे गये हैं(1) जीव शब्द (2) अजीव शब्द और (3) मिश्र शब्द।
(1) जीव शब्द-किसी प्राणी के मुँह से निकली हुई आवाज को जीव शब्द कहा जाता है। मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि के मुँह से निकली हुई आवाज इसी कोटि में आती है। यह आवाज प्रत्येक प्राणी की अलग-अलग होती है। अतः अनेक प्रकार की होती है। बहुत से मनुष्य अपने मुँह से ही धुंघुरू, ताशे, शहनाई आदि वाद्यों की ध्वनि गुंजारित कर देते हैं। यद्यपि इन बाजों से निकलने वाली आवाज अजीब शब्द की श्रेणी में आती है परंतु मनुष्य के मुँह से निकली हुई बाजों की आवाज को जीव शब्द में ही गिना जाता है।
मनुष्य की प्रतिध्वनि भी जीव शब्द ही है। ध्वनि को पुन: फेंकने वाला इटली के सुसेरा नामक स्थान में बड़ा ही अनोखा मकान है। इस मकान में यदि दिन को कोई बोले तो उसकी ग्यारह बार प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है और सूर्यास्त के बाद कोई बोले तो बारह बार प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है।
(2) अजीव शब्द-जो ध्वनि चेतनाहीन पदार्थों के कंपन से निकलती है उसे अजीव शब्द कहते हैं। मानव निर्मित वाद्य-हारमोनियम, ढोलक, सितार आदि की आवाज इसी कोटि में आती है।