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पुद्गल की विशिष्ट पर्याय इनमें न्यूनाधिकता होती है। तात्पर्य यह है कि पर्याय का स्वतंत्र अस्तित्व होता है। वह क्रमभावी होती है अर्थात् एक के बाद दूसरी होती है, जबकि गुण सहभावी होता है अर्थात् सदा बना रहता है और गुण गुणी से अलग नहीं हो सकता। जैसे जीव के ज्ञान, दर्शन गुण जीव से अलग नहीं हो सकते, इसी प्रकार पुद्गल के वर्ण, गंध, रस, हल्कापन, भारीपन, चिकनापन, खुरदरापन आदि गुण पुद्गल से कभी अलग नहीं हो सकते। परंतु उष्णता के संबंध में यह बात नहीं है। हम देखते हैं कि आग हटा दी जाती है फिर भी उष्णता शेष रह जाती है। उष्णता की रश्मियाँ प्रकाश की रश्मियों की तरह विकिरण होकर दूर-दूर तक फैलती है। जैसे प्रकाश का पदार्थ से भिन्न अस्तित्व देखा जाता है उसी प्रकार उष्णता का भी पदार्थ से भिन्न स्वतन्त्र ताप-ऊर्जा के रूप में अस्तित्व देखा जाता है, इसी ताप-रूप में आतप पुद्गल की पर्याय है।
यदि पुद्गल का कालापन, पीलापन, खटास, मिठास, सुगंध, दुर्गंध, हल्कापन, भारीपन, शीतलता, उष्णता आदि गुणों के आधार पर पर्याय के भेद, प्रभेद किये जायें तो उनकी गिनती अनंत हो जायेगी। अत: गुणों के आधार पर पुद्गल की पर्यायों का वर्णन नहीं किया गया है, प्रत्युत् अपनी मौलिक स्वतन्त्र अवस्था के आधार पर ही ताप, छाया, उद्योत, आतप आदि पर्यायों का वर्णन किया गया है और लगता है कि
आतप ताप की स्वतन्त्र अवस्था के रूप में आया है। यह रूप आज विज्ञान से भी सिद्ध हो रहा है।
विज्ञान जगत् में ताप को ऊर्जा की एक अलग इकाई के रूप में स्वीकार किया गया है। जैसी प्रकाश की किरणें हैं वैसी ही ताप की भी किरणें हैं। सूर्य के प्रकाश की किरणों के साथ-साथ ताप की किरणें भी