Book Title: Vigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Anand Shah

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Page 289
________________ 272 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य तो वह प्रति मिनिट 25,00,00,000 टन निकलता है। एक मिनिट का जब यह हिसाब है, तब एक घण्टे का हिसाब लगाये और फिर एक दिन का, मास का, वर्ष का, सैंकड़ों, हजारों, लाखों, करोड़ों, अरबों वर्षों का हिसाब लगाइये। तब पता चलेगा कि प्रकाश-विकिरण के चाप का वजन क्या महत्त्व रखता है।" आशय यह है कि विज्ञान ने आज यह प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया है कि अन्य साधारण पौद्गलिक पदार्थों की भाँति प्रकाश भी विविध कार्यों के करने में सक्षम, गतिमान व भारवान पौद्गलिक पदार्थ है। आतप जैनदर्शन में प्रकाश के समान आतप को भी पुद्गल की ही एक पर्याय अर्थात् अवस्था माना है। आतप शब्द तप् धातु से बना है जिसका अर्थ है, ताप या उष्ण किरणें। परंतु वर्तमान में आतप केवल सूर्य की धूप को ही कहा जाने लगा है। लगता है कि यह अर्थ का संकोच हो गया है। कारण कि उद्योत अर्थात् प्रकाश को पुद्गल की पर्याय पहले ही कहा जा चुका है तब फिर उसी प्रकाश के साथ उष्ण गुण जोड़कर अलग से पुद्गल की पर्याय कहने का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि उष्ण या शीतल गुण तो पुद्गल की प्रत्येक पर्याय में रहता ही है। गुण के आधार पर पर्याय में भेद करना अपेक्षित नहीं लगता है। उष्ण गुण और आतप पर्याय को समझने के लिए जल का ही उदाहरण लें। जल की गैस (वाष्प) द्रव्य (तरल पानी), ठोस (बर्फ) ये भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ हैं। ये जल की पर्यायें हैं। ये सब अवस्थाएँ किसी एक अवस्था की न्यूनाधिक रूप नहीं हैं। प्रत्येक अवस्था दूसरी अवस्था से भिन्न है। परंतु भाप, पानी, बर्फ इन तीनों अवस्थाओं में शीत-उष्ण, हल्का, भारी आदि गुण अवश्य रहते हैं। केवल

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