Book Title: Vigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Anand Shah

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Page 296
________________ जीव-अजीव द्रव्य और तत्त्व में अन्तर जीव एवं अजीव द्रव्य का प्रतिपादन लोक में इनकी अवस्थिति की दृष्टि से किया गया है। इसमें यह भी प्रतिपादन किया गया है कि द्रव्य में गुण होता है एवं उसकी पर्याय होती है। तत्त्व शब्द भाववाचक है। इसमें जीव-अजीव तत्त्व का विवेचन बंधन एवं मुक्ति की प्रक्रिया को समझने की दृष्टि से किया गया है। द्रव्य वस्तु के बाह्याकार प्रकार-आकृति-प्रकृति का वर्णन करता है, भाववाचक तत्त्व-शब्द का संबंध जीव से है। जीवत्व, चेतनत्व (चिन्मयता) और अजीवत्व (जड़ता, अचेतनता) की वास्तविकता का भावात्मक-अनुभवात्मक ज्ञान, भेद विज्ञान ही सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन के अभाव में कोई कितना भी संसार के विषय में ज्ञानार्जन करे वह मिथ्याज्ञान अज्ञान ही होता है। सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् संसार के विषय में कोई कुछ भी जाने, कुछ भी मान्यता रखे, वह उसका उपयोग विकार दूर करने में ही करेगा। अतः वह सम्यग्ज्ञान में परिणत होगा। मिथ्यादृष्टि जो भी पढ़ेगा उसका उपयोग-भोग सामग्री संग्रहित करने, भोग भोगने में करेगा। अत: महत्त्व उस ज्ञान का है जो संसार से, शरीर से संबंध विच्छेद करने, विरति उत्पन्न करने में सहायक हो। अतः साधक के लिए जिस साधना से वह अंतर्मुखी हो स्व-संवेदन के रूप में जड़ से चेतन की पृथक्ता का स्पष्ट अनुभव करे, चैतन्य के विलक्षण रस का अनुभव करे

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