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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य जिससे विषय-सुख, विष रूप दु:खद लगे और उनके त्यागने की तीव्र उत्कण्ठा जगे। क्योंकि जो क्रिया जिस लक्ष्य से की जाती है, वह उसी लक्ष्य की अंग होती है। मिथ्यात्वी की सब क्रिया मिथ्यात्व का पोषण करने वाली होती है।
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