Book Title: Vigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Anand Shah

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Page 279
________________ 262 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए सोहम्मे कप्पे अण्णेहिं एगूणेहिं बत्तीसविमाणा वाससय सहस्सेहिं, अण्णाई एगूणाई बत्तीसं घण्टासयसहस्साई जमगसमगं कणकणारावं काउं पयत्ताई चा वि हुत्था। -जम्बूद्वीप, अध्ययन 5, सूत्र 148 अर्थात् सुघोषा घण्टा का शब्द असंख्य योजन दूरी पर रही हुई घण्टाओं में प्रतिध्वनित होता है। विचारणीय तो यह है कि यह विवेचन उस समय का है जब रेडियो, वायरलेस आदि का आविष्कार नहीं था। आशय यह है कि शब्द या ध्वनि विषयक पढ़ाई हजार वर्ष पूर्व प्रतिपादित जैन सिद्धांत-ध्वनि को पुद्गल रूप मानना, सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होना, एक क्षण में लोकांत तक पहुँच जाना, असंख्य योजन दूर ध्वनित होना आज विज्ञान जगत् में सर्वमान्य सिद्धांत हो गये हैं। तम और छाया शब्द के अतिरिक्त अंधकार, छाया, प्रकाश, उद्योत और आतप पुद्गल की सूक्ष्म पर्यायें हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि ये सब पर्यायें प्रकाश से संबंधित विभिन्न रूप हैं यथा तम-प्रकाश का विरोधी कृष्ण-रूप जो देखने में बाधक हो। छाया-प्रकाश के अवरोध या प्रकाश से उत्पन्न प्रतिबिम्ब का रूप। प्रभा-प्रकाश का परावर्तित रूप। उद्योत-स्वयं पदार्थ से निकलने वाला प्रकाश। आतप या ताप-उष्ण किरणें। विज्ञान इन सब को शक्ति रूप से स्वीकार करता है। यह पहले के

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