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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य से ये लघु गुरु नहीं होती हैं और द्रव्यमान न होने से इनमें कोमलताकठोरता भी नहीं होती है। अतः इन लहरों में लघुता (हल्कापन), गुरुता (भारीपन), कोमलता, कठोरता ये चार गुण नहीं पाये जाते हैं। परंतु ये शक्तियाँ या लहरें विद्युत् युक्त व गतिमान होती हैं। विद्युत् युक्त होने से स्निग्ध-रूक्ष (धनात्मक-ऋणात्मक आवेश वाली) एवं गतिमान होने से शीत-उष्ण (तापमान) इन चार प्रकार के स्पर्श वाली होती है। जैनवर्शन की वैज्ञानिकता
वर्तमान युग में तो वैज्ञानिक उपलब्धियों ने दूर-ध्वनि प्रसारक (रेडियो), दूरदर्शन प्रसारण (टेलीविजन), दूर-विचार प्रेषण (टेलीपैथी) आदि ने पुद्गल स्कंध के सूक्ष्म रूप शक्ति या लहरों के अस्तित्व व उपयोग का ज्ञान प्रस्तुत कर दिया है परंतु आज के अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व जब इस प्रकार के ज्ञान का कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था उस समय जैनागमों में ऐसे चार स्पर्शी पुद्गल स्कंधों के अस्तित्व को मानना जिसमें हल्कापन, भारीपन, कोमलता और कठोरता तो न हो परंतु उनमें स्निग्धता, रूक्षता, शीतलता, उष्णता हो, उनके इन्द्रियातीत विलक्षण ज्ञान का ही द्योतक है।
____तात्पर्य यह है कि जैनदर्शन में वर्णित पुद्गल के गुण वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के मर्म को वर्तमान विज्ञान ने उजागर व पुष्ट किया है।
___पुद्गल की विशेषताएँ गतिशीलता
जैन आगमों में परमाणु को कंपनशील एवं गतिशील कहा है। 'भगवती सूत्र' में इस विषय पर विशद् प्रकाश डाला गया है। वहाँ कहा गया है