Book Title: Vigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Anand Shah

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Page 260
________________ पुद्गल द्रव्य 243 _ 'सिए एयइ, सिय वेयइ, जाव परिणमइ।' अर्थात् परमाणु कभी कंपन करता है, कभी विविध कंपन करता है यावत् परिणमन करता है। यावत् शब्द यहाँ इस बात का द्योतक है कि परमाणु में विविध कंपन की तरह और भी अनेक क्रियाएँ होती हैं। परमाणु की गति के विषय में इस प्रकार वर्णन है-परमाणु पोग्गलेणं भंते! लोगस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चच्छिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, पच्चच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरच्छिमिल्लं चरिमंतं एग समएणं गच्छइ, दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं जाव गच्छइ, उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं जाव गच्छइ, उविरल्लाओ चरिमंताओ हेढिल्लं चरिमंतं जाव गच्छइ, हेछिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एग समएणं गच्छइ। हन्ता गोयमा! परमाणु पोग्ले णं, लोगस्स पुरच्छिमिल्लं, तं चेव जाव उवरिल्लं चरिमंतं गच्छइ। -भगवती सूत्र 16.8.7 अर्थात् गौतम गणधर द्वारा परमाणु की गति के विषय में पाँच प्रश्न पूछने पर भगवान फरमाते हैं कि-“हे गौतम! परमाणु अपनी उत्कृष्ट गति से एक समय में लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम चरमांत, उत्तर चरमांत से दक्षिण चरमांत तथा अधोचरमांत से ऊर्ध्वचरमांत तक पहुँच सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो परमाणु एक समय में सम्पूर्ण लोक या संसार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँच सकता है। जैनदर्शन में 'समय' शब्द काल के अंतिम, लघुतम अविभाज्य अंश के लिए प्रयुक्त होता है और हमारी आँखों के पलक के एक बार उठने या गिरने जितनी-सी देर में असंख्य समय व्यतीत हो जाते हैं। ऐसे एक समय में परमाणु पूरे चतुर्दश रज्ज्वात्मक लोक को आद्योपांत पार कर लेता है। यह तो हुई परमाणु की तीव्रतम या अधिकतम गति, इसी प्रकार परमाणु की न्यूनतम गति के विषय

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