________________
पुद्गल द्रव्य
245 से यह ज्ञात हुआ है कि मानसिक तरंगों (मनोवर्गणाओं) की गति सर्वाधिक तीव्र है, वे तत्क्षण विश्व के छोर को छू लेती हैं। विज्ञान का यह कथन जैनदर्शन में वर्णित परमाणु की तीव्रतम गति का समर्थन करता है। किंतु विज्ञान को इस दिशा में कार्य करना शेष है। अप्रतिघातित्व
पुद्गल-परमाणु की एक विशेषता उसका अप्रतिघाति होना भी है। वह मोटी से मोटी लोह-दीवार, बड़े से बड़े पर्वत, अगाध सागर व वज्र के भी इस पार से उस पार बिना किसी रुकावट या बाधा के सहज भाव से निकल जाता है। आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है। यथा-"अब न्यूट्रिनो (Newtrino) नामक ऐसे सूक्ष्म अणु की कल्पना की गई है जिसके लिए परमाणु ऐसा है जैसा पिन के सिर के लिए व्हाइट हाऊस का गुम्बद और परमाणु के लिए पिन का सिर ऐसा है जैसा हमारे लिए वह गुम्बद। यदि इसे (Newtrino) पृथ्वी के आर-पार कराया जाय तो यह किसी अणु-परमाणु से टकराये बिना इस प्रकार से उस पार निकल जायेगा।" परिणामी-नित्यत्व
जैनदर्शन प्रत्येक द्रव्य को, चाहे वह जीव हो या अजीव, उसे परिणामी नित्य मानता है। यह अस्तित्व की अपेक्षा द्रव्य को ध्रुव, शाश्वत व नित्य मानता है और पर्याय की अपेक्षा सतत परिणमनशील मानता है। द्रव्य का यही परिणमन युक्त नित्यत्व स्वभाव परिणामी-नित्यत्व' सिद्धांत या ‘षड्गुण हानि-वृद्धि' के नाम से प्रसिद्ध है। आधुनिक विज्ञान इस सिद्धांत का प्रतिपादन व समर्थन 'द्रव्य और शक्ति की सुरक्षा का नियम' रूप में करता है। विज्ञान यह मानता है कि पदार्थ की मौलिकता (Fundamen
1. विज्ञान लोक, फरवरी 1965, पृष्ठ 33