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पुद्गल की विशिष्ट पर्यायें जैनवर्शन की वैज्ञानिकता
विज्ञान के विकास के पूर्व जैनदर्शन के अतिरिक्त विश्व में अन्य कोई दर्शन ऐसा नहीं था जो शब्द, अंधकार आदि इन सबको पुद्गल का रूप मानता हो। वे दर्शन इन्हें या तो स्वतंत्र पदार्थ मानते थे या पुद्गल के इतर किसी अन्य पदार्थ का गुण मानते रहे हैं अथवा पदार्थ ही नहीं मानते रहे हैं। एकमात्र जैनदर्शन ही ऐसा है जो इन्हें पुद्गल रूप मानता आ रहा है और आज विज्ञान के बढ़ते चरणों ने जैनदर्शन की उपर्युक्त मान्यता को सत्य प्रमाणित कर दिया है। उदाहरणार्थ शब्द संबंधी विचार को ही लें। पंचास्तिकायसार में कहा है
आदेयसमेत्तमुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु। सो णे ओ परमाणु परिणामगुणो सयमसद्दो।। सद्दो खंधप्पभवो खंधो परमाणुसंगसंघादो। पुढे सु तेसु जायदि सद्दो उप्पादिगो णियदो।
-पंचास्तिकायसार 78-79 अर्थात् परमाणु स्वयं अपशब्द है। शब्द की उत्पत्ति तो स्कंधों के संघर्षण से होती है, इसलिए शब्द स्कंध से उत्पन्न हैं।
___ शब्द संबंधी जिन सिद्धांतों की स्थापना जैनाचार्यों ने शताब्दियों पूर्व की थी, आज विज्ञान-जगत् में पुन: उस मान्यता की पुष्टि हो गई है। शब्द की उत्पत्ति को लें। जैनदर्शन की दृष्टि में यह स्कंध प्रभव होने से पुद्गल की पर्याय है, अत: अरूपी या अभौतिक पदार्थ नहीं है। जबकि अन्य दार्शनिकों ने इसे आकाश का गुण माना है। आज के वैज्ञानिक भी जैनदर्शन में कथित शब्द की उक्त मान्यता का समर्थन करते हैं। इस विषय में प्रो. ए. चक्रवर्ती का मत द्रष्टव्य है-The Jain account of sound is a