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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
या रोने आदि के अप्रिय स्वर आ रहे हों तो स्वाद में कमी आ जाती है। भोजन की गंध का भी स्वाद पर प्रभाव पड़ता है, इसीलिये नाक बंद होने पर सेब और कच्चे आलू के स्वाद में बहुत कम अंतर मालूम होता है। शीत-उष्णता व स्पर्श का भी स्वाद से गहरा संबंध है। बासी रोटी में स्वाद इसीलिये नहीं आता कि उसमें ताप नहीं होता और उसका स्पर्श भी अच्छा नहीं लगता। भोजन के रंग का प्रभाव तो प्राय: प्रतिदिन ही देखने को मिलता है। शाक, सब्जी, मिठाइयों को सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए उनमें अनेक कृत्रिम रंगों का प्रयोग किया जाता है।
किस्म-किस्म के स्वाद-इस प्रकार कुछ काल पूर्व तक वैज्ञानिक रंग की अनुभूति को पदार्थ का एक स्वतंत्र गुण न मानकर उसके वर्ण, गंध व स्पर्श की अनुभूतियों का मिलाजुला रूप मानते थे। परंतु नवीन वैज्ञानिक अन्वेषणों ने अपनी इस मान्यता में शोधन कर दिया है। अब वैज्ञानिकों ने रस या स्वाद को मौलिक रूप में स्वीकार किया है। इस विषय में उनकी मान्यता यह है कि मूल रूप से स्वाद चार प्रकार के होते हैंनमकीन, मीठा, खट्टा और कड़वा। इन स्वादों के मिश्रण से हजारों किस्म के स्वाद बन जाते हैं।
तात्पर्य यह है कि विश्व में रस के असंख्य प्रकार हैं। उनका मूल जैनदर्शनों में पाँच रसों को बताया है। वर्तमान विज्ञान के अनुसंधानों ने उनमें से चार रसों को मूल रसों के रूप में स्वीकार कर जैनसिद्धांत को पुष्ट किया है। रहा एक रस सो विज्ञान जगत् में शीघ्र ही स्वीकार करने की संभावना है, कारण कि रसों के संबंध में अभी वैज्ञानिक खोज बहुत अपूर्ण है। जैसा कि अमेरिकी टेस्टिंग कम्पनी के अनुसंधान समिति के अध्यक्ष डॉ. फास्टर का मत है कि-"स्वाद के बारे में वैज्ञानिकों ने अनेक