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पुद्गल द्रव्य
237 उभार पर इन कलिकाओं की संख्या ढाई सौ के लगभग होती है। ये विभिन्न प्रकार की होती हैं। प्रत्येक कलिका के ऊपरी सिरे से एक बहुत ही पतला तंतु निकलता है। स्वाद-कलिका के नीचे के सिरे का संबंध रक्त से होता है। आयु के बढ़ने के साथ स्वाद-कलिकाओं का स्थान भी बदलता रहता है। लघु शिशु की जीभ के अग्रिम भाग और गाल के नीचे ये कलिकाएँ फँसी रहती हैं। पीछे ये स्वाद-कलिकाएँ जीभ की पूरी लंबाई में फैल जाती हैं। युवावस्था में जीभ पर लगभग नौ हजार स्वाद-कलिकाएँ होती हैं। परंतु जैसे-जैसे व्यक्ति वृद्धावस्था को प्राप्त होता जाता है वैसेवैसे स्वाद-कलिकाओं की संख्या कम होती जाती है और इसीलिए वृद्धावस्था में, भोजन करते समय स्वाद में कमी आ जाती है।
जब हम कोई खाने की वस्तु मुँह में रखते हैं तो जीभ की सभी स्वाद-कलिकाएँ प्रभावित नहीं होती हैं। खट्टा, मीठा, खारा, कड़वा, कसैला स्वादों को ग्रहण करने वाली स्वाद-कलिकाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। नमकीन स्वाद का संवेदन जीभ के सभी छोरों पर स्थित कलिकाओं से होता है। मीठे का संवेदन जीभ की नोंक पर स्थित कलिकाओं से, कड़वे का संवेदन जीभ के पिछले भाग से, खट्टे का संवेदन जीभ की दो बगलों में स्थित कलिकाओं से होता है। परंतु स्वाद की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इन सब संवेदनाओं का कोई निश्चित नियम नहीं है। एक स्थान से विभिन्न या विभिन्न स्थानों से एक स्वाद भी ग्रहण कर लिया जाता है।
स्वाद और विषयों की पारस्परिकता-वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि प्रत्येक इन्द्रिय के विषय का परस्पर गहरा संबंध है। स्वाद भी इसका अपवाद नहीं है। स्वाद में ध्वनि, ताप, रूप, रंग, गंध, स्पर्श आदि के संवेदन का महत्त्वपूर्ण योग होता है। आसपास यदि बहुत शोर हो रहा हो