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पुद्गल द्रव्य
235 विज्ञापन और सुगंध-आज विज्ञापन को प्रभावशाली बनाने के लिए छापाखाने की स्याही में सुगंध मिलाई जाने लगी है। यदि आप किसी साबुन या अगरबत्ती का विज्ञापन पढ़ रहे हैं तो उस साबुन या अगरबत्ती की सुगंध भी आपकी नाक में पहुँचेगी। अब कागज के फूल भी वैसी सुगंध देंगे जैसी असली फूल देते हैं। प्लास्टिक आदि की वस्तुएँ लकड़ी, चमड़े आदि की शक्ल और रंग की बनी होंगी और साथ ही लकड़ी, चमड़े आदि की गंध मी उनमें होगी। सुगंध परिणति : दुर्गध परिणति
जैनदर्शन में गंध के विषय में कहा गया है
गंधओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया। सुन्भिगंध परिणामा, दुब्भिगंधा तहेव य॥
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 36, गाथा 18 अर्थात् गंध परिणति दो प्रकार की होती है-सुगंध परिणति और दुर्गंध परिणति और प्रत्येक परमाणु या वस्तु में गंध होती ही है। विज्ञान जगत् ने इस कथन को अब प्रयोगों द्वारा भी सिद्ध कर दिया है। गंध : पुद्गल का आवश्यक गुण
जैनदर्शन में गंध को पुद्गल का गुण माना है, जिसका मतलब होता है कि प्रत्येक पौद्गलिक वस्तु में गंध अवश्यमेव रहती है। यहाँ शंका उपस्थित की जा सकती है कि पृथ्वी, जल, हवा, वनस्पति आदि में तो गंध प्रत्यक्ष देखी जाती है, परंतु क्या अग्नि जैसे शक्ति रूप माने जाने वाले पदार्थों में भी गंध संभव है? यह सही है कि अग्नि जैसे शक्ति रूप अर्थात् सूक्ष्म पदार्थों की गंध हमारी नासिका द्वारा लक्षित या ग्रहण नहीं होती परंतु गंध वहन प्रक्रिया से स्पष्ट है कि गंध पुद्गल का आवश्यक