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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुक्किला तहा।।
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 36, गाथा 17 वर्ण परिणति के पाँच प्रकार हैं-काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत। हमें साधारणतः वर्ण या रंग हजारों प्रकार के दृष्टिगोचर होते हैं, परंतु वर्तमान विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि सब रंगों का अन्तर्भाव उपर्युक्त पाँच वर्गों में होता जाता है और इन्हीं वर्गों में से दो या दो से अधिक वर्गों के मिश्रण में बहुत से नये रंग बन जाते हैं। वर्ण : पदार्थ का गुण
जैनदर्शन वर्ण को पदार्थ का गुण मानता है और यह ऊपर कह आये हैं कि द्रव्य गुण से युक्त और गुण द्रव्य से आश्रित होता है। अतः प्रत्येक परमाणु या पुद्गल स्कंध नियमत: वर्ण युक्त होता है। वर्ण रहित कोई भी परमाणु या पुद्गल नहीं हो सकता। उसका वर्ण उसकी प्रकृति का द्योतक होता है। विज्ञान ने आज इसे सिद्ध कर दिया है यथा“वर्णक्रमदर्शीय विधियों में विश्लेषणात्मक क्षेत्र का विशेष महत्त्व तब प्रकट हुआ जब किरचोय ने 1859 में वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) विश्लेषण का पता लगाया। उनकी शोध का सिद्धांत यह है कि किसी पदार्थ से निकलने वाला या उसके द्वारा ग्रहण किया जाने वाला वर्णक्रम उस पदार्थ की प्रकृति पर ही निर्भर होता है। इसलिए प्रत्येक परमाणु के अपने वर्णक्रम होते हैं
और प्रत्येक अणु से निःसृत होने वाले या उसके द्वारा ग्रहण किये जाने वाले वर्णक्रम से उसे जाना जा सकता है।
वर्ण के प्रकार-जैनदर्शन पाँच वर्ण मानता है, परंतु विज्ञान लाल,
1. कादम्बिनी, अगस्त 1967, पृष्ठ 40