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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य की उत्पत्ति का विवेचन करते हुए कहा है-“स्निग्धरूक्ष गुणनिमित्तो विद्युत।” अर्थात् विद्युत् स्निग्धरूक्ष गुणों का परिणाम है। इससे स्पष्ट होता है कि स्निग्ध गुण से धन (Positive) विद्युत् और रूक्ष गुण से (Nagative) विद्युत् उत्पन्न होती है और इन दोनों की विद्यमानता प्रत्येक पदार्थ में अनिवार्य है। इस प्रकार आणविक बंधन के कारणभूत सिद्धांत में जैनदर्शन और विज्ञान दोनों एकमत हैं। जैनदर्शन की भाषा में उसे स्निग्ध और रूक्ष गुणों का संयोग कहा है जबकि विज्ञान की भाषा में इसे धन और ऋण विद्युत् का संयोग कहा गया है। यही नहीं, विज्ञान में जैनदर्शन के इस सिद्धांत को-कि दो गुण से अधिक होने पर स्निग्ध का स्निग्ध के साथ और रूक्ष का रूक्ष के साथ बंध होता है-स्वीकार कर लिया है। विज्ञान ने भारी ऋणाणु (Heavy Electrons) को स्वीकार किया है। यह साधारण ऋणाणुकों से पचास गुना अधिक भारी होता है उसे नेगेट्रोन (Negatrons) कहा जाता है। यह साधारण ऋणाणु का ही समुदाय है इसमें केवल ऋण विद्युत् ही होती है। इस प्रकार ऋणाणु का ऋणाणु के साथ अर्थात् रूक्ष का रूक्ष के साथ बंधन है।
तात्पर्य यह है कि विज्ञान जगत् में अथक परिश्रम और अगणित आविष्कारों के पश्चात् आज पदार्थ-निर्माण प्रक्रियाओं के जिन सूत्रों का प्राकट्य हुआ है उन सूत्रों को जैनागम-प्रणेताओं ने सहस्रों वर्ष पूर्व उस समय ही प्रकट कर दिया था, जिस समय मानव समाज वर्तमान वैज्ञानिक उपकरणों, यंत्रों एवं आविष्कारों से सर्वथा अपरिचित था। वैज्ञानिक उपकरणों के अभाव में जैनागमकारों का यह प्रतिपादन करना कि-सोना,
1. डॉ. वी. एल. शील का कथन है कि जैन दार्शनिक इस बात से पूर्ण परिचित थे कि पोजिटिव और
नेगेटिव विद्युत् कणों के मिलने से विद्युत् उत्पन्न होती है। देखिये उनकी पुस्तक-Positive Sci
ence of Ancient Hindus 2. Science and Culture No. 1937