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पुद्गल द्रव्य
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तात्पर्य यह है कि विज्ञान जगत् में अब पदार्थ व शक्ति में मौलिक भेद न रहकर केवल स्थूलत्व व सूक्ष्मत्व का ही भेद रह गया है। एक ही मौलिक तत्त्व पुद्गल का 'शक्ति' सूक्ष्म रूप है और ठोस, द्रव, और वायव्य स्थूल रूप। इस प्रकार प्रकारान्तर से विज्ञान ने प्रकाश, विद्युत्, ताप आदि शक्तियों को पदार्थ मानकर जैन आगमों की इस मान्यता को कि ये पुद्गल हैं, पुष्टकर दिया है।
पुद्गल बंध
'बंध' भी पुद्गल की पर्याय है। बंध का अर्थ है, बँधना, मिलकर एकरूप होना । अवयवों का परस्पर अवयव और अवयवी के रूप में परिणमन होना ही बंध कहा जाता है। संयोग में केवल अंतर रहित अवस्थान होता है, किंतु बंध में एकत्व होता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं का भी बंध होता है और दो या दो से अधिक स्कंधों का भी । परमाणुओं का स्कंध के साथ भी बंध होता है व पुद्गल परमाणुओं का जीव द्रव्य के साथ भी बंध होता है।
बंध के दो प्रकार हैं- (1) वैस्रमिक (2) प्रायोगिक । स्वाभाविक होने वाला बंध वैस्रसिक कहा जाता है, जैसे मेघ, इन्द्र धनुष, धन विद्युत् आदि।
बंध-प्रक्रिया- जैनाचार्यों ने बंध की प्रक्रिया का जो अत्यन्त सूक्ष्म विश्लेषण किया है वह विश्व में अनूठा है। विज्ञान के विकास के पूर्व इस विश्लेषण में विहित सिद्धांतों में निहित तथ्यों को बुद्धिगम्य करना व समझना भी गुरुतर कार्य था। परंतु जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करता जा रहा है वैसे ही वैसे उन सिद्धांतों में अंतर्निहित रहस्य प्रकट होता जा रहा है। परमाणु के स्कंध किस प्रकार बनते हैं इस विषय में निम्नांकित नियम मुख्य हैं