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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य शक्ति पुद्गल-परमाणुओं का ही एक रूप है और वह भी उसी प्रकार भारवान है जिस प्रकार पुद्गल। शक्ति में भार होता है अतः व्यवहार में इसे भार शून्य माना जाता है। परंतु विज्ञान जगत् में शक्ति में न केवल भार ही स्वीकार किया गया प्रत्युत् उसके तौल के लिए समीकरण (गाणतिक सूत्र) भी बना लिये हैं। तीन हजार टन पत्थर के कोयले को जलाने से जितना ताप उत्पन्न होगा या एक हजार टन पानी को वाष्प में परिणत करने के लिए जितने ताप की आवश्यकता होगी उसका भार 1/ 30 ग्राम से भी कम होगा।
पदार्थ शक्ति में परिणत हो जाता है परंतु शक्ति भी नष्ट न होकर पुनः पदार्थ में या अन्य किसी प्रकार विशेष में परिणत हो जाती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल. ए. कोल्डिग अपनी थीसिस और एनर्जी पुस्तकों में लिखते
-Energy is imperishable and immortal and therefor wherever and whenever energy seems to vanish in performing certain mechanical and other works, it merely undergoes a transformation and reappears in a new form but the total quantity of energy still abides.
___अर्थात् शक्ति अविनाशी और शाश्वत है इसलिए जहाँ कहीं भी नष्ट होती देखी जाती है, वहाँ नष्ट नहीं होती है प्रत्युत परिवर्तन लेती हुई, दूसरे रूप में प्रकट हो जाती है, परंतु उस परिवर्तन में उसकी मात्रा अक्षुण्ण रहती है।
तात्पर्य यह है कि विज्ञान पदार्थ के रूपांतर को स्वीकार करता है, परंतु आत्यंतिक विनाश को नहीं। दूसरे शब्दों में वह पदार्थ को उत्पत्ति, व्यय व ध्रौव्य युक्त मानता है। इस प्रकार जैनदर्शन में प्रतिपादित ‘सद् द्रव्यलक्षणम्' 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' रूप द्रव्य के स्वरूप का विज्ञान पूर्ण