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जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
हुए हों, किंतु अब स्वयमेव परिणमन कर रहे हों, मिश्र - परिणत कहे जाते हैं जैसे कटे हुए नख, केश, मल, मूत्र आदि ।
( 3 ) विस्रसा - परिणत ( Inorganic Matter) - ऐसे पुद्गल जिन्होंने अपना परिणमन स्वयमेव किया है, विस्रसा परिणत कहे जाते हैं जैसेबादल, इन्द्रधनुष आदि ।
आधुनिक विज्ञान भी उपर्युक्त पुद्गल - स्कंधों के भेदोपभेद के स्वरूप को कथंचित् स्वीकार करता है । जैनदर्शन में निरूपित स्कंध स्वरूप स्कंध संचरना परिणमन- प्रक्रिया तथा स्कंध के भेद आदि विषयक जो मौलिक सिद्धांत हैं उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी सत्य प्रमाणित कर दिया है।
परमाणु भगवान महावीर ने पुद्गल के भेद इस प्रकार बताये हैं
खंधा य खंधदेसा य, तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोधव्वा, रूविणो य चउव्विहा ।।
- उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 36, गाथा 10
अर्थात् रूपी द्रव्य के स्कंध, देश और परमाणु ये चार भेद हैं। मूर्त द्रव्य की एक इकाई स्कंध है अर्थात् दो से लेकर अनन्त परमाणु का एकीभाव स्कंध है, स्कंध के मनोनीत एक भाग को देश तथा स्कंधगत निरंश अवयव को प्रदेश कहा जाता है। पुद्गल का यही निरंश अवयव स्कंध अवयव स्कंध से पृथक् स्वतन्त्र इकाई की अवस्था में होता है तो परमाणु कहा जाता है। प्रदेश और परमाणु में केवल स्कंध से पृथक् भाव और अपृथक्भाव का ही अंतर है।
यह दृश्य जगत् भौतिक जगत्-परमाणुओं का ही संघटित रूप है। परमाणुओं के समुदाय से स्कंध बनते हैं और स्कंधों के मेल से स्थूल