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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य रुविअजीव पज्जवाणं भंते! कइविहा पण्णत्ता? गोयमा! चउब्विहा पण्णत्ता तं जहा-खंधा खंधदेसा, खंधपएसा, परमाणुपोग्गले।
-पन्नवणा पद 5, सूत्र 502 अन्तादि अन्तममं अन्तेणेव इन्दियगेझं। जं दव्वं अविभागी तं परमाणु।
-सर्वार्थसिद्धि 5/25 अर्थात् परमाणु अति सूक्ष्म है अतः वह स्वयं आदि है, स्वयं ही मध्य है और स्वयं ही अंत है, जो इन्द्रियों से अग्राह्य व अविभागी है, ऐसे द्रव्य को परमाणु जानना चाहिये। आशय यह है कि जैनदर्शन में वर्णित परमाणु कल्पनातीत सूक्ष्मता लिये हुए है।
विज्ञान परमाणु को कितना सूक्ष्म मानता है इसका अनुमान इस बात से लग जाता है कि वहाँ बीस शंख परमाणुओं का भार लगभग एक तौला है। बालू के एक छोटे से कण में दस पदम से अधिक परमाणु होते हैं। पिन के सिरे में 55,000,000,000,000,000,000 परमाणु समा जाते हैं। सोडा वाटर के गिलास में डालने पर जो छोटी-छोटी बूंदें निकलती हैं उनमें से एक बंदू के परमाणुओं को गिनने के लिए संसार के तीन अरब व्यक्तियों को बिठाया जाय और बिना खाये-पिये-सोये लगातार प्रति मिनिट तीन सौ की चाल से गिनते जाये तो उस नन्हीं बूंद के परमाणुओं की समस्त संख्या को समाप्त करने में चार महीन लग जायेंगे। परमाणु का व्यास एक इंच का दस करोड़वाँ हिस्सा माना जाता है। रूस की लेनिनग्राद वेधशाला में स्थित 'क्वार्टस' नामक तराजू-जो एक ग्राम का दस अरबवाँ भाग तक सही तोल सकती है से बाल प्वाइंट पेन से कागज पर लगाये गये एक बिंदु को तोला गया तो वजन निकला .0001158 ग्राम।' यह है विज्ञान द्वारा अंकित पुद्गल की सूक्ष्मता।
1. नवनीत, मई 1962, पृष्ठ 71 2. जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान, पृष्ठ 47 3. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, 14 मई 1967, पृष्ठ 10