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पुद्गल द्रव्य
211 पदार्थ। स्कंध और स्थूल पदार्थ टूटकर अनेक स्कंध बन जाते हैं। इस प्रकार का संयोग और वियोग अर्थात् पूरण और गलन पुद्गल का मूल गुण है। यदि पुद्गल में वियोजक शक्ति न होती तो सब अणु एक पिण्ड बन जाता है और यदि संयोजक शक्ति न होती तो प्रत्येक अणु भिन्नभिन्न रहता और स्कंध रूप वस्तु का निर्माण संभव न होता। समस्त दृश्य विश्व परमाणुओं के संघटन व विघटन का ही खेल है।
परमाणु का स्वरूप शास्त्र में इस प्रकार कहा है-“दव्वपरमाणू णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! चउविहे पण्णत्ते तं जहा-अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडज्झे, अगेज्झे।
-भगवती, श. 20, उ. 5 "भगवन्! द्रव्य परमाणु कितने प्रकार का कहा गया है। उत्तर में भगवान बताते हैं कि हे गौतम! चार प्रकार का कहा गया है-अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य।" किसी भी उपाय, उपाधि व उपचार से उसका विभाजन संभव नहीं है। परमाणु की सूक्ष्मता के विषय में आगम में कहा है
परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्ढे समझे, सपएसे? उदाहु अणड्डे, अमज्झे, अपएसे ? गोयमा ! अणड्ढे, अमज्झे, अपएसे, नो सड्ढे, नो समज्झे, नो सपएसे। -भगवती सूत्र, शतक 5, उद्देशक 7, सूत्र 9
भगवन्! क्या परमाणु पुद्गल सार्ध, समध्य, सप्रदेशी है अथवा आर्ध, अमध्य, अप्रदेशी है? भगवान् ने कहा-हे गौतम! परमाणु पुद्गल अनर्ध, अमध्य, अप्रदेशी है, सार्ध, समध्य, सप्रदेशी नहीं है। अर्थात् परमाणु में न लम्बाई है, न चौड़ाई है और न गहराई है, वह केवल इकाई का घटक रूप है। अति सूक्ष्म होने से परमाणु को आदि, अंत और मध्य एक ही कहा गया है यथा“सौक्ष्मादय: आत्ममध्या: आत्मांताश्च।"
-राजवार्तिक 5/25/1