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पुद्गल द्रव्य
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सन् 1811 ईस्वी तक यही समझा जाता था कि सोना, चाँदी आदि द्रव्यों के सूक्ष्मतम अणु ही मूलभूत है। पश्चात् प्रसिद्ध वैज्ञानिक अवोगद्रा ने सर्वप्रथम अणु से परमाणु को अलग किया और वह विज्ञान जगत् में तत्त्वों का आदि उपादान माना जाने लगा परंतु सन् 1893 में सर जे. जे. टामसन ने ठोस इकाई के रूप में माने जाने वाले परमाणु को पोला सिद्ध कर दिया। टामसन के शिष्य रदरफोर्ड ने परमाणु के भीतर एक नये द्रव्य ‘इलेक्ट्रोन' को लगाया। इससे पुरानी मान्यता ढह गई।
___ परमाणु का वर्तमान स्वरूप-विज्ञान के नवीन अन्वेषणों ने परमाणु में, सौर मण्डल की प्रक्रिया (Solar System) सिद्ध कर दी है। जिस प्रकार सूर्य के चारों ओर ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र आदि) निरंतर अपनी कक्षा में परिभ्रमण करते हैं, इसी प्रकार परमाणु के कलेवर में सौर परिवार का संसार विद्यमान है। प्रत्येक परमाणु में अनेक कण हैं। कुछ कण केन्द्र में स्थित हैं और कुछ उसी केन्द्र की नाना कक्षाओं में निरंतर अत्यन्त तीव्र गति से परिभ्रमण करते हैं। केन्द्रीय कणों को धन विद्युतमय होने से धनाणु या प्रोट्रोन (Proton) तथा परिक्रमाशील कणों को ऋण विद्युतमय होने से ऋणाणु या इलेक्ट्रोन (Electron) कहते हैं। धन विद्युत् का कार्य है किसी पदार्थ को दूर फेंकना और ऋण विद्युत् का कार्य है खींचना। इन दो विरोधी गुण युक्त विद्युत् कणों की आकर्षण-विकर्षण शक्ति के परिणामस्वरूप ही परमाणु में सतत सौरप्रक्रिया (Solar System) चालू रहती है।
___ यहाँ प्रथम हाइड्रोजन परमाणु की रचना पर विचार करते हैं। इसका व्यास 1/200,000,000 इंच अर्थात् एक इंच का बीस करोड़वाँ अंश है तथा तोल 164/100,000,000,000,000,000,000,0000 ग्राम है। यह एक धनाणु है और एक ऋणाणु का ईकाई रूप है। इसके केन्द्र