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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य दोनों ही परम्पराओं द्वारा प्रतिपादित काल-विषयक विवेचन में जो मतभेद दिखाई देता है, वह अपेक्षाकृत ही है। वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व, काल के लक्षण भी हैं और पदार्थ ही पर्यायें भी है और यह नियम है कि पर्यायें पदार्थ रूप ही होती हैं। पदार्थ से भिन्न नहीं। अत: इस दृष्टि से काल को स्वतन्त्र द्रव्य न मानकर औपचारिक द्रव्य मानना उचित ही है।
कालाणु भिन्न-भिन्न हैं। प्रत्येक पदार्थ परमाणु व वस्तु से कालाणु आयाम रूप से संयुक्त है तथा पदार्थों की पर्याय परिवर्तन में अर्थात् परिणमन व घटनाओं के निर्माण में सहकारी निमित्त कार्य के रूप में भाग लेता है। यह नियम है कि निमित्त उपादान से भिन्न होता है। अत: इस दृष्टि से काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानना उचित ही है।
उपर्युक्त दोनों परम्पराओं की मान्यताओं के समन्वय से यह फलितार्थ निकलता है कि काल एक स्वतन्त्र सत्तावान द्रव्य है। वह प्रत्येक पदार्थ से संयुक्त है। पदार्थ की क्रियामात्र से उसका योग है। आधुनिक विज्ञान भी काल के विषय में इन्हीं तथ्यों को प्रतिपादित करता है। आइंस्टीन ने सिद्ध किया है कि देश और काल मिलकर एक हैं और वे चार डायमेन्शनस (लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई और दिक्काल) में अपना काम करते हैं। विश्व के चतुरायाम संधरण में दिक्काल की स्वाभाविक अतिव्याप्ति से गुजरने के प्रयत्न लाघव का फल ही मध्याकर्षण होता है। देश और काल परस्पर स्वतन्त्र सत्ताएँ हैं। रिमैन की ज्यामिति और आइंस्टाइन के सापेक्षवाद (जिसने विश्व की कल्पना को जन्म दिया है) में देश और काल परस्पर संपृक्त हैं। दो संयोगों (इवेन्ट्स) के बीच का
1-2.ज्ञानोदय, विज्ञान अंक, पृष्ठ 35 3-4.ज्ञानोदय, विज्ञान अंक, पृष्ठ 114