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पुद्गल द्रव्य
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पुद्गल का यह परिणमन कार्य दो प्रकार से होता है-स्व वस्तु रूप और अन्य वस्तु रूप परिणति से । उदाहरण के लिए जल को ही लिया जाय, यह बर्फ के रूप में ठोस, धारा के रूप में द्रव्य व वाष्प के रूप में गैस में परिणत हो जाता है। जल का यह परिणमन स्व वस्तु रूप है और जल जो कि द्रव (Liquid) पुद्गल है, वनस्पति का आहार बन ठोस पुद्गल बन जाता है और वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा विश्लेषण किए जाने पर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों के पुद्गलों में परिणत हो जाता है। जल का यह पर वस्तु रूप परिणमन है। इस उदाहरण से जैनदर्शन की यह मान्यता स्पष्ट व पुष्ट हो जाती है कि पुद्गल स्व-वस्तु रूप तथा अन्य वस्तु रूप में परिणमनशील है।
आशय यह है कि सृष्टि की प्रत्येक वस्तु चाहे वह सूर्य से सैकड़ों गुणा बड़ा सितारा हो या एक इंच के शंखवें भाग से भी छोटा परमाणु हो अथवा उससे भी लाखों गुणा छोटा, उसी परमाणु के उदर में स्थित न्युक्लियस हो, चाहे वह ठोस, द्रव, वायव्य दशा में हो अथवा विद्युत् प्रकाश आदि शक्ति रूप दशा में हो पुद्गल परमाणु से ही बनी हुई है और उसका केवल रूप परिवर्तन होता है, आत्यंतिक नाश कदापि नहीं होता है।
स्कंध
भौतिक विज्ञान का विषय भूत (पदार्थ) जैनदर्शन में पुद्गल शब्द से अभिहित है। समस्त लोकवर्ती पुद्गल द्रव्य पुद्गलास्तिकाय कहा जाता है। पुद्गल के भेद इस प्रकार हैं
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जे रूवी ते चउविहा पण्णत्ता
खंधा, खंध देसा, खंद पएसा, परमाणु पोग्गला ।
- भगवती शतक 2/10/66