________________
202
जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य तत्त्वों या पदार्थों का मूलभूत उपादान स्वीकार कर लिया गया है। विद्युत् के दो रूप हैं धन विद्युत् अर्थात् प्रोटोन (Proton) और ऋण विद्युत् अर्थात् इलेक्ट्रोन (Electron)। यह नियम है कि प्रत्येक अणु में प्रोटोन को केन्द्र बनाकर इलेक्ट्रोन उसके चारों ओर घूमते हैं तथा अणु के केन्द्र में जितने प्रोटोन होते हैं उतनी संख्या में उसके परिभ्रमण करने वाले इलेक्ट्रोन होते हैं। प्रोटोन के संघटन से अणुओं का निर्माण होता है। जिस तत्त्व के अणु जितने प्रोटोन वाले होते हैं, वह तत्त्व उसी नम्बर का कहा जाता है उदाहरणार्थ-ताँबे के अणुओं के केन्द्र में 29 प्रोटोन होते हैं, अतः वह 29 नम्बर का, चाँदी के अणुओं के केन्द्र में 79 प्रोटोन होते हैं अतः वह 79 नम्बर का तत्त्व है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विज्ञान जगत् में तत्त्वों की संख्या उनके अणुओं के केन्द्र में रहे हुए प्रोटोन की संख्या पर निर्भर करती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा अणुओं के केन्द्र में स्थित प्रोटोनों की संख्या को घटाकर एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में परिणत कर दिखाया है। इसी प्रक्रिया से वैज्ञानिक बैंजामिन ने पारे को सोने में परिणत कर यह प्रमाणित कर दिया है कि सब तत्त्व परस्पर बदले जा सकते हैं और ये सब विद्युत् की मात्रा के तारतम्य के ही विविध रूप हैं। अर्थात् एक ही प्रकार के मूलभूत परमाणुओं में निर्मित हैं। इस प्रकार विज्ञान जगत् में जैनदर्शन का यह सिद्धांत स्वतः सिद्ध हो गया है कि विश्व के समस्त पदार्थों का निर्माण एक ही प्रकार के परमाणुओं से हुआ है और वे सोना, चाँदी, पारा, लोहा आदि समस्त पार्थिव द्रव्यों के रूप में परिणत हो सकते हैं।
विज्ञान सम्पूर्ण पुद्गल द्रव्य (Matters) के तीन वर्ग करता हैठोस (solids) द्रव्य (Liquids) और गैस (Gases)। विज्ञान यह भी मानता है कि इन तीनों वर्गों के पुद्गल सदा अपने-अपने वर्ग में नहीं रहते प्रत्युत अपना वर्ग छोड़कर रूप बदलकर दूसरे वर्गों में भी जा सकते हैं।