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कालद्रव्य
जा रहा है। जैनागमों में व्यावहारिक काल का वर्णन इस प्रकार है यथाएगमेगस्सणं भंते ! मुहुत्तस्स केवतिया ऊसासद्धा वियाहिया ? गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति पवुच्चड़, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो ।
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हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चइ || सत्तपाणूण से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए || तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाई, तेवत्तरिं च ऊसासा । एस मुहुत्तो दिट्ठो, सव्वेहिं अनंतनाणीहिं ।।
- भगवती 6.7.4
श्री गौतम स्वामी पृच्छा करते हैं कि हे भगवन्! एक-एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये हैं? भगवान महावीर का कथन है कि हे गौतम! असंख्यात समय के समुदाय की एक आवलिका होती है, संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास, संख्यात आवलिका का एक निःश्वास स्वस्थ पुरुष का होता है। एक श्वासोच्छ्वास को प्राण कहते हैं। सप्त प्राण का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, 77 लव का एक मुहूर्त और 30 मुहूर्त की एक अहोरात्रि होती है तथा एक श्वासोच्छ्वास में 17 क्षुल्लक भव और एक क्षुल्लक भव (आयु का सबसे छोटा परिणाम ) में 256 आवलिका होती है। इस प्रकार एक मुहूर्त्त में 7 × 7 × 77 श्वासोच्छ्रास तथा एक श्वासोच्छ्रास में 17 x 256 = 4352 आवलिकाएँ होती है और एक मुहूर्त्त में 1,64,20,096 आवलिकाएँ होती हैं। अन्यत्र एक मुहूर्त में 1,67,77,216 आवलिकाएँ भी कही गयी हैं। वर्तमान समय
= 3773