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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य भी समय न लगा हो और आप उस व्यक्ति के समक्ष बैठकर ही बातचीत कर रहे हों। चार हजार मील तार को पार करने में तरंग को लगा समय भले ही आपको प्रतीत न हो रहा हो फिर भी समय तो लगा ही है। कारण कि वह तरंग एकदम ही वहाँ नहीं पहुँची है बल्कि एक-एक मीटर और मिलीमीटर को क्रमश: पार कर आगे बढ़ती हुई वहाँ पहुँची है। अब आप उस तरंग को टेलीफोन के तार के एक मीटर या मिलीमीटर को पार करने में जितना समय लगा उसकी सूक्ष्मता का अनुमान लगाइये। आप चाहे अनुमान लगा सकें या न लगा सकें परंतु तरंग को एक मिलीमीटर तार पार करने में समय तो लगा ही है। जैनदर्शन में वर्णित 'समय' इससे भी असंख्यात गुणा अधिक सूक्ष्म है।
'समय' नापने की विधि में भी जैनदर्शन व विज्ञान जगत् में आश्चर्यजनक समानता है। दोनों की गति-क्रिया रूप स्पंदन के माध्यम से समय का परिमाण निश्चित करते हैं यथा
अवरा पन्नावरिदी खणमेतं होइ ते च समओ त्ति। दोण्हमणूणमदिक्कमकालपमाणं हवे सोउ।।
-गोम्मटसार, जीवकांड 572 सर्वद्रव्यों के पर्याय की जघन्य स्थिति (ठहरने का समय) एक क्षण मात्र होती है। इसी को समय कहते हैं। अथवा दो परमाणुओं के अतिक्रमण करने के काल का जितना प्रमाण है उसको समय कहते हैं। अथवा आकाश के एक प्रदेश पर स्थित एक परमाणु मंद गति द्वारा समीप के प्रदेश पर जितने काल में प्राप्त हो उतने काल को एक समय कहते हैं। आधुनिक विज्ञान भी सूक्ष्म समय का नाप परमाणु के स्पंदनों का अंकन करने वाली घड़ियों से करते हैं, जिन्हें आणविक घड़ियाँ कहते हैं। इन घड़ियों में दो स्पंदनों के अन्तर्काल को समय का घटक माना जाता है।