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धर्म-अधर्म द्रव्य
आशय यह है कि जैनदर्शन में वर्णित 'धर्म' द्रव्य और विज्ञान जगत् के 'ईथर' द्रव्य में आश्चर्यजनक समानता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ये एक ही द्रव्य के दो पर्यायवाची नाम हैं।
अधर्मास्तिकाय के अन्य सब लक्षण तो धर्मास्तिकाय के समान हैं केवल गुणों में भिन्नता है। गुण की दृष्टि से धर्मास्तिकाय जहाँ गति में आश्रयभूत है वहाँ अधर्मास्तिकाय स्थिति में आश्रयभूत है। कहा भी है'अहम्मो ठाणलक्खणो।' -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 32, गाथा 9
गति और स्थिति दोनों सापेक्ष हैं। अत: इनमें से किसी भी एक गुण वाले द्रव्य के अस्तित्व के दूसरे गुण वाले द्रव्य का अस्तित्व स्वतः सिद्ध हो जाता है। स्थिति में सहायभूत अधर्म द्रव्य (Medium of rest) के विषय में वैज्ञानिकों के विषय में वैज्ञानिकों की खोज जारी है। आकर्षण शक्ति का एक रूप गुरुत्वाकर्षण का क्षेत्र (Field of gravitation) सामने आया है जिसमें अधर्म द्रव्य के प्राय: सभी गुण पाये जाते हैं। वर्तमान विज्ञान के अनुसार 'ईथर' और 'गुरुत्वाकर्षण' में अभौतिकत्व, अरूपत्व, अमूर्तत्व आदि सब गुण तो समान हैं केवल कार्य में ही भेद है। ईथर का कार्य गति में माध्यम होना है और गुरुत्वाकर्षण का कार्य स्थिति में माध्यम होना है। अत: जिस प्रकार धर्म द्रव्य का ईथर से साम्य है उसी प्रकार अधर्म द्रव्य का गुरुत्वाकर्षण से साम्य हो सकता है।
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