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त्रसकाय
167 बिना किसी भौतिक माध्यम (रड़ियो, तार, टेलीफोन आदि) से हजारों मील दूरस्थ व्यक्ति के साथ केवल मन के माध्यम से विचारों के आदान-प्रदान, प्रेषण-ग्रहण करने की प्रक्रिया को टेलीपैथी कहते हैं। आज टेलीपैथी के विकास में अमरीका और रूस में होड़ है। कुछ समय पूर्व अमेरिका के प्रयोगकर्ताओं ने हजारों मील दूर सागर के गर्भ में चलने वाली पनडुब्बियों के चालकों को टेलीपैथी प्रक्रिया से संदेश भेजने में सफलता प्राप्त कर विश्व को चकित कर दिया है। अभिप्राय यह है कि दूरस्थ व्यक्ति के मन के भावों को जानना आज सिद्धांततः स्वीकार कर लिया गया है।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का कथन है कि यदि प्रकाश की गति से अधिक (प्रकाश की गति एक सैकेण्ड में 18,600 मील है) गति की जा सके तो भूत और भविष्य की घटनाओं को भी देखा जा सकता है।
अभिप्राय यह है कि विज्ञान अवधि, मन:पर्यव व केवलज्ञान के अस्तित्व में विश्वास करने लगा है। दर्शन
__जैनागमों में 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' अर्थात् तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा को सम्यग्दर्शन कहा है। तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा स्याद्वाद के बिना होना असंभव है। कारण कि स्याद्वाद ही एक ऐसी दार्शनिक प्रणाली है जो तत्त्व के यथार्थ स्वरूप का दिग्दर्शन करती है। प्रत्येक तत्त्व या पदार्थ अनंत गुणों का भंडार है। उन अनंत गुणों में वे गुण भी शामिल हैं जो परस्पर में विरोधी हैं फिर भी एक ही देश और काल में एक साथ पाये जाते हैं। इन विरोधी तथा भिन्न गुणों को विचार-जगत् में परस्पर न टकराने देकर उनका समीचीन सामञ्जस्य या समन्वय कर देना ही स्याद्वाद, सापेक्षवाद