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त्रसकाय
165 एक विशेष प्रक्रिया से प्रसारण और ग्रहण होता है। इस प्रक्रिया को टेलीपैथी कहा जाता है। यह पहले लिखा जा चुका है कि टेलीपैथी के प्रयोग से हजारों मील दूरस्थ व्यक्ति भी विचारों का आदान-प्रदान व प्रेषण-ग्रहण कर सकते हैं। भविष्य में यही टेलीपैथी की प्रक्रिया सरल और सुगम हो जनसाधारण के लिए भी महान् लाभदायक सिद्ध होगी, ऐसी पूरी संभावना है।
__ आशय यह है कि अति प्राचीन काल से ही जैन जगत् के मनोविज्ञानवेत्ता मन के पुद्गलत्व, वर्ण, विद्युतीय शक्ति आदि गुणों से भलीभाँति परिचित थे। जबकि इस क्षेत्र में आधुनिक विज्ञानवेत्ता अभी तक भी उसके एक अंश का ही अन्वेषण कर पाये हैं।
जान
जैन शास्त्रों में ज्ञान का वर्णन करते हुए कहा है
तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिणिबोहियं। ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं॥
__-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 4 अर्थात् ज्ञान पाँच प्रकार का है-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यव और केवल ज्ञान। इनमें से मति और श्रुत ज्ञान तो प्रायः सर्वमान्य हैं, परंतु शेष तीन ज्ञान के अस्तित्व पर अन्य दार्शनिक आपत्तियाँ उपस्थित करते रहे हैं। लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषण ने इनको सत्य प्रमाणित कर दिया है। ज्ञान के स्वरूप का वर्णन करते हुए भगवती शतक 1, उद्देशक 3 में कहा है-अवधि ज्ञान से मर्यादा सहित सकल रूपी द्रव्य, मन:पर्यवज्ञान से दूरस्थ संज्ञी जीवों के मनोगत भाव तथा केवलज्ञान से तीन लोक युगपत् जाना जाता है। इसी विषय पर वैज्ञानिकों के विचार व निर्णय द्रष्टव्य हैंडॉ. वगार्नर्डविगा लिखते हैं