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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य आक का पौधा अपनी रक्षा चिकनाई से करता है। यह चिकनाई एक लेसदार द्रव की होती है और सारे पौधे पर छाई रहती है। हानिकारक कीड़े जब पौधे पर चढ़ते हैं तो उनके पाँव तने पर छाई कोमल-सी चिकनी तह में फँस जाते हैं। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए ये कीड़े पौधे को हानि पहुँचाये बिना ही रफुचक्कर हो जाते हैं।'
विषैली गैस द्वारा अपनी रक्षा करने वाला पौधा है “उपस।" यह जावा के भीतरी भागों में घने जंगलों में झाड़ियों की जाति के कंटीले पौधों के रूप में मिलता है। वनस्पति-शास्त्र में इसे 'एंटियारिसटोक्सिकारिया' कहा जाता है। इसमें से कपूर जैसा लेसदार द्रव निकलता है जो पोटेशियम साइनाइड के समान अत्यंत विषैला होता है। यह जहरीली गैस भी छोड़ता है जिससे चारों ओर का वायु मंडल विषाक्त हो जाता है। इसका दुष्प्रभाव पन्द्रह मील तक पड़ता है। मनुष्य इसे दूर से ही नमस्कार कर निकल जाते हैं। इन पेड़ों के विषाक्त प्रभाव से उनके आस-पास पशु-पक्षियों के शवों के ढेर व हड्डियों के टीले से लगे रहते हैं। इस प्रकार ये पौधे अपने विषाक्त रस या गन्ध से अपनी रक्षा करते हैं। सलीबीज और मालवा के घने जंगलों में व बोटानिकल-गॉर्डन में आज भी ऐसे वृक्ष मिलते हैं।
जिस प्रकार पक्षी अपनी व बच्चों की सुरक्षा की दृष्टि से अपना घोंसला झूलने वाली स्थिति में बनाते हैं, उसी प्रकार कुछ वृक्ष अपनी सुरक्षा हेतु हमेशा टीलों के कगारों में झलने वाली स्थिति में उत्पन्न होते हैं। “थानी-बरेल'' ऐसे ही वृक्ष हैं। ये अर्जेन्टाइना के घने जंगलों के भीतरी भागों में पाये जाते हैं। इन्हें वहाँ के निवासी 'यूचान' कहते हैं। इन की आकृति बोतलाकार व आकर्षक होती है। ये अपने तने व डालियों
1. कादम्बिनी, फरवरी 1967, पृष्ठ 85