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वनस्पति में संवेदनशीलता
137 लक्षण के रूप में कहें तो लेश्याएँ शुभ-अशुभ वृत्तियों और प्रवृत्तियों की द्योतक हैं।' अशुभ वृत्तियाँ क्रूरता के रूप में व शुभ वृत्तियाँ दयालुता के रूप में व्यक्त होती हैं। कृष्ण लेश्या-अशुभतम (क्रूरतम) वृत्ति की, नील लेश्या अशुभतर (क्रूरतर) वृत्ति की, कापोत लेश्या अशुभ (क्रूर) वृत्ति की, तेजो लेश्या शुभ वृत्ति की, पद्म लेश्या-शुभतर वृत्ति की, शुक्ल लेश्या-शुभतम वृत्ति की परिचायक है। लेश्याओं के अन्तर्हित वृत्तियों, उनकी तरमता व पारस्परिक संबंध को समझने के लिए थर्मामीटर तापक्रम का उदाहरण लिया जा सकता है। जिस प्रकार तापमापक में उष्णता से पारा चढ़ता है तथा शीतलता से पारा उतरता है तथा पारे का यह उतारचढ़ाव तापमान की न्यूनाधिकता के साथ घटता-बढ़ता रहता है, इसी प्रकार प्राणी की वृत्तियों की उष्णता-अशुभत्व (क्रूरत्व) की वृद्धि से लेश्या रूप पारा चढ़ता जाता है तथा वृत्तियों की शीतलता-शुभता (दयालुता) की वृद्धि से लेश्या का पारा उतरता जाता है। लेश्याओं के पारे का यह उतार-चढ़ाव वृत्तियों के शुभाशुभ अंशों की वृद्धि ह्रास के साथ सदा घटता-बढ़ता रहता है। परंतु जिस प्रकार मानव शरीर का तापमान एक निश्चित सीमा 94° से 108° के बीच ही में रहता है, इससे ऊँचा नीचा नहीं जाता है तथा प्रत्येक स्थान, समय आदि की निम्नतम व उच्चतम तापमान की सीमा निश्चित होती है, उसी प्रकार लेश्याओं के उतार-चढ़ाव की भी प्रत्येक वर्ग के प्राणियों की, निम्न तक व उच्चतम निश्चित सीमा होती है। वनस्पतिकाय के जीवों में यह सीमा कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक है अर्थात् वनस्पति में वृत्तियों का उतार-चढ़ाव कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या के बीच चलता रहता है। परंतु जिस प्राणी में जिस वृत्ति की अधिकता या मुख्यता होती है उसे उसी वृत्ति या लेश्या वाला कहा जाता है। उक्त चारों लेश्याओं में से किस लेश्या की प्रधानता किस वनस्पति में स्पष्टतः मिलती है, यह नीचे दिखाया जा रहा है
1. भगवती सूत्र, खण्ड 2, पृष्ठ 91 के यन्त्रगत (पं. बेचरदासजी कृत अनुवाद)