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विलक्षण ज्ञानी पक्षी - जैनदर्शन मनुष्य के समान अन्य जीवों में भी मति व श्रुत ज्ञान मानता है । देखा जाता है कि बहुत-सी बातों में मनुष्यों से पक्षी आगे है। साइबेरिया के पक्षी सर्दी की ऋतु प्रारंभ होने पर हजारों मील उड़कर भारत में भरतपुर की झील में आते हैं, तथा कुछ पक्षी हजारों मील के सागर को पारकर दक्षिण ध्रुव में पहुँचते हैं और ग्रीष्म ऋतु में पुनः अपने निवास स्थान पर लौट आते हैं। जबकि मार्ग में हजारों मीलों तक महासागर में जल होने से मार्गदर्शक कोई निशान नहीं होते हैं । यह उनके ज्ञान की विलक्षणता ही है।
त्रसकाय
कुत्तों को किसी गाड़ी में बंदकर मीलों दूर छोड़ दिया जाय तो भी वे पुन: उसी मार्ग से वापस आ जाते हैं, जिस मार्ग से उन्हें ले जाया गया है। यद्यपि ले जाते समय वह मार्ग उन्होंने नहीं देखा हैं।
पशु, पक्षी सेवाभावी और स्वामी भक्ति में भी मानव से आगे बढ़ते देखे जाते हैं। गायें, कुत्ते, अपने स्वामी की रक्षा के लिए प्राण तक दे देते हैं।
वैक्रिय रूपधारी गिरगिट - त्रसकाय जीवों में जैनदर्शन में वैक्रिय अर्थात् रंग-रूप बदलने वाला शरीर माना गया है। गिरगिट जैसा वातावरण देखता है, वैसा ही अपना रंग रूप बना लेता है । बादलों को देखते ही बादली रंग के कोट- पेंट पहनते उसे देर नहीं लगती है। दिन में अनेक बार अपने रंग बदलता ही रहता है। उसका यह रंग बदलाव इतना अधिक प्रसिद्ध है कि वातावरण को देखकर बातें या वृत्ति - प्रवृत्ति बदलने वाले मानव को गिरगिट की उपमा दी जाती है।
बुद्धिमता-कठफोड़वा पक्षी पेड़ को काटकर एवं कुतरकर अपना घर बनाता है, परिवार बसाता है तथा बरसात में भी सुरक्षित रहता है ।