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त्रसकाय
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अर्थ है शरीर से प्रकट होने वाला शीतल प्रकाश।' तिर्यंच गति में एकेन्द्रिय वनस्पति आदि से लेकर पंचेन्द्रिय तक के पशु-पक्षी आदि जीव शामिल हैं। इसका आशय यह है कि ऐकन्द्रिय जीव वनस्पति आदि से लेकर पंचेन्द्रिय तक ऐसे जीव भी पाये जाते हैं, जिनके शरीर से ऐसा प्रकाश निकलता है, जो उष्ण नहीं है। पहले साधारणत: जुगनू को ही ऐसा जीव माना जाता था, परंतु अब जीव विज्ञान की खोज ने एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय में उद्योत प्रकट करने वाले जीव हैं, ऐसा सिद्ध कर दिया है।
जीव-विज्ञान में जिन जीवों प्रकाश में उत्सर्जन होता है, उन्हें 'प्रदीपीजीव' कहते हैं तथा ऐसे प्रकाश को 'जीव-संदीप्ति' कहा जाता है। प्रकाश उत्सर्जित करने की क्षमता केवल जुगनू में ही नहीं, अनेक जीवों में होती है जिनमें पौधे और जन्तु दोनों आते हैं। प्रदीपीजीवों में कुछ विशिष्ट प्रकार के जीवाणु, कवक, स्पंज, कोरस, फलेजिलेट, रेडियोलेरियन, घोंघे, कनखजूरे, कानसलाई या गोवारी (मिलीपीड) अनेक प्रकार के कीट तथा अधिक गहराई में पाई जाने वाली समुद्री मछलियाँ आदि की गणना होती है।
उपर्युक्त जीवों में एकेन्द्रिय (वनस्पति आदि) से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों का समावेश हो जाता है। कवक व बैक्टीरिया वनस्पति आदि के एकेन्द्रिय जीव हैं। जब पेड़ों की सड़ी-गली शाखाओं-प्रशाखाओं पर प्रदीपी कवक और बैक्टीरिया जग जाते हैं तो वृक्ष प्रकाशमय दिखाई देने लगते हैं। महाकवि कालिदास ने अपनी रचनाओं में वृक्षों से प्रकाश
1. गोम्मटसार, कर्म काण्ड गाथा। 2. विज्ञान-प्रगति, अंक 292, पृष्ठ 329