________________
जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
कृष्णलेश्या - यह अशुभतम वृत्ति, प्रवृत्ति व प्रकृति मुख्यत: मानव, पशु, पक्षी पंचेन्द्रिय जीवों का भक्षण करने वाली होरिजिंटल स्क्रब आदि वनस्पतियों में देखी जाती है। ये अपने क्रूरतम भावों से सदैव शिकार की ताक में रहती हैं। जैसे ही कोई भूला भटका अपरिचित पशु-पक्षी या मनुष्य इनके पास पहुँचता है, ये उस पर टूट पड़ती है। उसे अपने पंजे में ऐसा फँसा लेती है कि बहुत प्रयत्न करने पर भी वह छूट नहीं पाता है। अंत में ये उसका रक्त चूसकर ही छोड़ती है। ऐसी वनस्पतियाँ अफ्रीका महाद्वीप, तस्मानिया, मेडागास्कर द्वीप में विशेषतः पायी जाती हैं ।
138
नीललेश्या - यह अशुभतर - क्रूरतर वृत्ति मुख्यत: कीट - भक्षी यूट्रीकुलेरिया, वटर - वार्ट, सनड्यू आदि वनस्पतियों में पायी जाती है। जैसे ही कोई कीड़ा इनके फूलों पर बैठता है, ये उसे अपनी कलियों के कपाट लगाकर कारागार में बंद कर लेती हैं व अपना बना लेती हैं।
अमेजन के जंगलों में ‘मंचनील' नाम का वृक्ष होता है। इसमें बड़े-बड़े लाल-लाल फूल लगते हैं इन फूलों से पीले रंग का बुरादा जैसा पदार्थ झड़ता है। वह इतना तेज व जहरीला होता है कि वह जिस अंग को छू जाता है वहाँ का मांस गलकर बह जाता है तथा साथ ही दाद, खाज आदि चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं ।
9
कापोतलेश्या-यह अशुभ क्रूर वृत्ति मुख्यत: कंटीले विषैले दुर्गंधित पौधों में पायी जाती है। ये वनस्पतियाँ आगंतुक को काँटे चुभोकर, दुर्गंध व विष फैलाकर परेशान करती हैं। ऐसी वनस्पतियों में 'टच मी नाट' काक तुरई, चमचमी आदि को लिया जा सकता है।
इस लेश्या प्रकरण में ऊपर जिन वनस्पतियों का नामोल्लेख किया गया है, उनकी प्रवृत्तियों की विलक्षणता का वर्णन इस निबन्ध के अन्यान्य