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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
बढ़ता जाता है। कलकत्ते के बोटेनिकल बाग में खड़े बरगद के 500 तने हैं। बरगद का यह राई से भी छोटा बीज आज 3,000 फुट की परिधि में विस्तार कर अपने उत्कर्ष का प्रदर्शन कर रहा है।
__ 'मैनग्रोज' वनस्पति भी विस्तारवादी प्रकृति की है। “पृथ्वी के तेईस अक्षांश से लेकर अट्ठाईस अक्षांश तक भूमध्यरेखा के उत्तर-दक्षिण दोनों ओर समुद्र के किनारे पर मैनग्रोज' वृक्षों के जंगल के जंगल फैले हुए हैं और बराबर समुद्र की ओर बढ़ते चलते हैं। ये फ्लोरिडा के समुद्र तट पर हजारों वर्ग मील में फैले हुए हैं। प्रशान्त महासागर के किनारे-किनारे इनका बहुत विस्तार है। इनकी जड़ें ऊपरी तने और शाखाओं से रस्सी की तरह लटकती हैं और ज्वार द्वारा छोड़ी गई कीचड़ मिट्टी में घुसती जाती हैं। ये जड़ें लंबी होती हैं और इन पर खड़ा पेड़ वैसा ही लगता है जैसे कोई व्यक्ति दो लंबे-लंबे बाँसों में पाँवदान लगाकर लंबे-लंबे डग भरता हो।"
माया-आगम में माया के नामों का वर्णन करते हुए कहा है
“माया, उवही, नियडी, वलए, गहणे, णूमे, कक्के, कुरूए दंभे, कूडे, जिम्हे, किब्बिसे, अणायरणया, गूहणया, वंचणया, पलिकुंचणया, साइजोगे।"
-समवायांग, 52 ___ माया, उपधि, निकृत, वलय, गहन, नूम, कल्क, कुरूक, दंभ, कूट, जिम्ह, किल्विषिक, अनाचरणता, गूहनता, वञ्चनता, परिकुंचनता और सातियोग, ये माया के नाम हैं। हिन्दी भाषा में माया के लिए कपट, कुटिलता, कृत्रिमता, धोखा, धूर्तता, छल, वंचना, जिम्ह, निकृति आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
1. नवनीत, अक्टूबर 1962