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वनस्पति में संवेदनशीलता
125 छीनकर स्वयं उससे कमाने लगते हैं। उनके इस कपटपूर्वक कार्य के परिणाम स्वरूप बेचारा आश्रयदाता तो कंगाल हो जाता है और वे स्वयं फलने-फूलने लगते हैं। इसी प्रकार कुछ पौधे भी कपटपूर्ण व्यवहार करने में बड़े निष्णात होते हैं उनमें से अमरबेल' भी एक है। यह भारत में प्राय: सर्वत्र पायी जाती है। यह दिखने में बड़ी सुंदर, स्पर्श में बड़ी मुलायम होती है। इस प्रकार यह अपने रंग-रूप से बड़ी ही भली व भोली-भाली लगती है। यह स्नेह तो इतना दिखाती है कि जिस वृक्ष का संग करती है उससे लिपट ही जाती है। परंतु फिर यह धीरे-धीरे ‘मुँह में राम बगल में छूरी' कहावत चरितार्थ करती है। यह अपनी शाखाओं का जाल-जिसे मायाजाल ही कहना चाहिये, चारों ओर फैलाती है और उनके द्वारा अपने आश्रयदाता वृक्ष का सर्वस्व हड़पकर उसे कंगाल व कंकाल बनाकर ही छोड़ती है।
मलेशिया के क्वींस लैण्ड प्रांत में अमरबेल जैसी ही एक अन्य बेल होती है। यह बड़ी प्राण घातक होती है यह बेल जिस वृक्ष पर चढ़ती है, छह मास के भीतर उस पर अपना जाल बिछा देती है जिससे वह वृक्ष सूख जाता है। जब उस पर चूसने व लूटने को कुछ भी शेष नहीं रहता है तो अपना मायाजाल दूसरे वृक्ष पर फैलाने के लिए इधर-उधर अपने चरण बढ़ाती है।
अपनी माया में फँसाकर जीव-जन्तुओं का शिकार व आहार करने में नेपेन्थाज या घटपर्णी वनस्पति भी कम नहीं है। यह आस्ट्रेलिया, बोरनियो, लंका व भारत के आसाम के वनों में मिलती है। अमेरिका में भी इसकी कई जातियाँ पायी जाती है। यह कीचड़ व दलदली भूमि में होती है। इसका पौधा छोटा होता है तथा तना जमीन पर रेंगता हुआ आगे बढ़ता है। इस तने में से शाखाएँ निकलती हैं जो ऊपर की ओर उठी रहती