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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य चट्टान की दीवार में पौधों के बीज न ठहर सकते हैं, न पनप सकते हैं। अतः वह अपनी सहज बुद्धि का सहारा लेता है। गर्भाधान की क्रिया ज्यों ही समाप्त होती है त्यों ही वह फिर दीवार की ओर झुकना शुरू कर देता है और दीवार के सहारे तब तक आगे बढ़ता है जब तक कि उसे बीजों को गिराने के लिए छेद या खाली जगह न मिल जाय। छेद मिलते ही वह उसके भीतर घुसकर अपने बीज डाल देता है। इस प्रकार बीजों को उगने व पनपने के लिए सुरक्षित स्थान पर रखकर वह निर्भय या निश्चिन्त हो जाता है।
अभिप्राय यह है कि वर्तमान वनस्पतिविज्ञान जैनागमों में प्रतिपादित इस तथ्य का समर्थन करता है कि अन्य प्राणियों के समान वनस्पति भी भयाक्रांत होती है और अपनी संतान की रक्षा के लिए विविध एवं विचित्र उपायों का सहारा लेती हैं।
मैथुनसंज्ञा-आगमों में मनुष्य, पशु, पक्षी, आदि के समान वनस्पति में भी मैथुनसंज्ञा मानी है। आज के वनस्पतिविज्ञान ने न केवल इसे स्वीकार ही किया है अपितु इस विषय को एक अलग उपशाखा का रूप दे दिया है वह है, 'भ्रूण-विज्ञान'। भ्रूण-विज्ञान का संबंध वनस्पति की मैथुनक्रिया, गर्भाधान, भ्रूण व बीज बनने आदि से है। भारतीय वैज्ञानिक प्रो. पंचानन माहेश्वरी विश्व के वनस्पति-भ्रूण वैज्ञानिकों में अग्रणी हैं। आपने प्रयोगों द्वारा आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट किए हैं। लगभग 82 कुलों के पौधों के भ्रूण-परिवर्धन की कथा उनके अथक परिश्रम की साक्षी है।
वनस्पति-विज्ञान में पौधों में मैथुनक्रिया का विशद् वर्णन है, उसे संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है
1. नवनीत, जुलाई 1957, पृष्ठ 53