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वनस्पति में संवेदनशीलता
79 उबलने से वनस्पति का मृत या निर्जीव हो जाना बतलाया गया है। जो जीवविज्ञान विषयक उपर्युक्त प्रयोगों से प्रत्यक्ष प्रमाणित होता है।
(7) उत्पादन या प्रजनन (Reproduction)-जीवधारियों में अपनी जाति को स्थायी रखने के लिए प्रजनन की शक्ति होती है। पक्षी अंडे देकर तथा पशु अपनी ही आकृति-प्रकृति के बच्चे पैदा करके अपनी जाति की वंश-परंपरा को बनाये रखते हैं। इसी प्रकार वनस्पति भी अपने बीज से अपने ही समान नये पौधों को जन्म देकर अपनी वंश-परंपरा को बनाये रखती है। इतना ही नहीं, अन्य प्राणियों के समान इनमें मैथुन व अन्य क्रियाएँ भी होती हैं। आज इस विषय का ज्ञान इतना अधिक विस्तृत हो गया है कि वनस्पति-विज्ञान में भ्रूण-विज्ञान नामक एक नई शाखा ही खुल गई है।
(8) अनुकूलन (Adoptation)-जीवधारियों में अपने आपको परिस्थिति के अनुकूल ढ़ालने की अनुपम क्षमता होती है। घास में रहने वाले जंतुओं का रंग हरा या उसी घास के रंग का तथा मिट्टी के रंग का होता है, जिससे वे जंतु अपने को शत्रुओं से छिपाकर जीवन-निर्वाह व रक्षा कर सकें। गिरगिट तो प्रकृति के अनुरूप रंग बदलने में विख्यात ही है। पौधों में भी यह अनुकूलन क्रिया होती है। रेगिस्तान के पौधों की पत्तियाँ सजल स्थानों के पौधों की अपेक्षा छोटी होती हैं, जिससे उनके द्वारा भाप बनकर पानी कम उड़े और वे कम पानी में ही जीवन-यापन कर सकें।
(७) विसर्जन (Excretion)-जीवों की शारीरिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप यूरिया, यूरिक, अम्ल, कार्बन-डॉइ-ऑक्साइड आदि अनेक दूषित व मल पदार्थ बनते हैं। इनको शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को विसर्जन या निहार कहा जाता है। पशु-पक्षियों में क्रिया गुर्दो, त्वचा,