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वनस्पति में संवेदनशीलता अनेक प्रकार के हैं। पौधे में रहने वाला एक जीव भी प्रत्येक शरीरी है
और उसके भाग मूल, स्कंध, शाखा, पत्र, पुष्प व फल में व उसके विभिन्न भागों में संयुक्त रूप से रहने वाले जीव भी प्रत्येक शरीरी हैं। ये संख्या में एक, दो, असंख्य, अनन्त हो सकते हैं। एक बार स्व. बाबू छोटेलालजी ने एक मण्डली सहित श्री जगदीशचन्द्र बसु की प्रयोगशाला से इसका समाधान चाहा कि वृक्ष के पत्ते, फल, फूल, बीज आदि में भी अलग-अलग जीव हैं या नहीं? अनुसंधानशाला में यन्त्रों के माध्यम से पत्र-पुष्प आदि में पृथक्-पृथक् जीव प्रमाणित किए गए थे। पौधे के अतिरिक्त पुष्प में भी अपना पृथक्-पृथक् जीव है, यह निम्नांकित प्रयोग से सिद्ध होता है
“एक तुरंत के तोड़े डंठल सहित सफेद गुलाब को या अन्य किसी फूल को लाल पानी के डंठल डुबाकर रखिये। थोड़ी देर में फूल की पंखुड़ियों पर लाल रंग जगह-जगह दिखलाई देगा।"
उपर्युक्त प्रयोग से स्पष्ट प्रकट होता है कि यदि फूल में अपना पृथक् जीव न होता तो वह पौधे से टूटने पर मृत हो गया होता और लाल रंग का जलपान न कर सकता। फूल ही नहीं प्रत्येक बीज भी सजीव होता है। कहा भी है
बीए जोणिभूए जीवो, वक्कमइ सो व अन्नो वा। जो वि य मूले जीवो, सो वि य पत्ते पढमयाए।
-पन्नवणा, प्रथम पद, गाथा 51 अर्थात् योनिभूत बीज ही उत्पन्न होते हैं। जो बीज छेदन-भेदन करने व भुने जाने से निर्जीव हो गये हैं वे उत्पन्न नहीं होते हैं। जौ, गेहूँ,
1. प्रारंभिक जीवविज्ञान, पृष्ठ 197