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वनस्पति में संवेदनशीलता
105 मारक विष है। जब कीड़ा इसके रंग-बिरंगे सुंदर फूलों से आकृष्ट हो इसके पत्ते के पास आता है और पत्ते को छू जाता है तो वह चिपचिपा पदार्थ उनके पैरों को मजबूती से पकड़ व जकड़ लेता है। फिर ज्यों-ज्यों कीड़ा अपने को छुड़ाने का प्रयत्न करता है त्यों-त्यों पत्ता ऊपर और अन्दर की
ओर मुड़ता जाता है और कीड़ा एक जीवित समाधि में बंद हो जाता है। फिर पौधा उसे अंदर पचा लेता है।'
मानव-भक्षी वृक्ष-“अफ्रीका महाद्वीप तथा मेडागास्कर द्वीप के सघन जंगलों में कहीं-कहीं मानवभक्षी वृक्ष मिलते हैं, जो मनुष्यों और जंगली जानवरों को अपना शिकार बनाते हैं। कहा जाता है कि एक मनुष्य-भक्षी वृक्ष की ऊँचाई 25 फुट तक होती है। इस विशाल और भयानक लगने वाले वृक्ष की अनेक शाखाओं के अग्र भाग में थाली के आकार के बड़े फूल लगे रहते हैं। ये शाखाएँ 1-2 फुट लम्बे काँटों से भरी रहती हैं।
जब भी अंधेरे में कोई जानवर या मनुष्य असावधान होकर उस वृक्ष के पास से गुजरता है तब वृक्ष की काँटेदार शाखाएँ निर्जीव शरीर को चारों ओर से घेर लेती हैं। काँटे शरीर में घुसकर खून चूस लेते हैं और बाहर निकल जाते हैं। तब वृक्ष की शाखाएँ निर्जीव शरीर को छोड़ देती हैं। शिकार का खून चूस लेने पर फूलों का आकार बढ़ जाता है, किंतु कई दिनों बाद वे फिर असली हालत में आ जाते हैं। इस प्रकार वृक्ष के नीचे कंकालों का ढेर लग जाता है। कुछ वर्षों पूर्व साइकिल के द्वारा विश्व-भ्रमण करने वाले श्री मिश्रीलाल जायसवाल ने युगाण्डा के भयानक जंगल में मनुष्यभक्षी वृक्ष की शाखाओं में फंसे हुए एक बारहसिंघे को स्वयं अपनी आँखों से देखा था।
1. नवनीत, मई 1962, पृष्ठ 82 2. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, 17 जून 1972, पृष्ठ 52