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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
वर्तमान में प्राय: सभी नगरपालिकाएँ मनुष्य के मल का खाद बनाती हैं और वह दुर्गन्धित खाद पौधों को दिया जाता है तो वही खाद खरबूजे के पौधे के तने में कठोर व रूक्ष स्पर्श में, फूलों में विविध वर्गों में, फलों में खट्टे, मीठे, कड़वे आदि विविध रसों में रूपान्तरित हो जाता है। तात्पर्य यह है कि वनस्पति में आहार के पुद्गलों को विविध वर्ण, गंध, रस व स्पर्श में परिणमन करने की विलक्षण शक्ति है।
इसी प्रसंग में श्री गौतम स्वामी भगवान महावीर से पूछते हैं“कम्हा णं भंते ! वणस्सइकाइया आहारेंति कम्हा परिणामेति? गोयमा! मूला मूलजीवफुडा, पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति, कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति एवं जाव बीय जीवफुडा फलजीव-पडिबद्धा तम्हा आहारेंति तम्हा परिणामेति।
-भगवती शतक 7, उद्देशक 3, सूत्र 4 हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव कैसे आहार करते हैं? तथा किये हुए आहार को किस प्रकार परिरणमन करते हैं? भगवान का कथन हैगौतम ! मूल को मूल जीव स्पर्श हुए हैं, परंतु वे पृथ्वी जीव से प्रतिबद्ध हैं इसलिए मूल (जड़) के जीव पृथ्वीकाय का आहार करते हैं और उसे शरीर में परिणमाते हैं। इसी प्रकार आहार में से कुछ आहार कंद के जीव आकर्षित करते हैं। कन्द में से स्कंध (तना) के जीव, स्कंध में से शाखा के जीव, शाखा में से प्रतिशाखा के जीव, प्रतिशाखा में से पत्ते और फूल, फूल में से फल और फल में से बीज के जीव आकर्षित करते हैं और शरीर में परिणमाते हैं।
1. आचार्यश्री अमोलक ऋषिजी कृत अनुवाद, पृष्ठ 898