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वनस्पति में संवेदनशीलता
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व सुलभता होने से वर्षा ऋतु में वनस्पति अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक आहार करती है तथा ग्रीष्म ऋतु में जल की अत्यधिक कमी होने से आहार का घोल या विलयन अत्यल्प बनता है अतः ग्रीष्म ऋतु में वनस्पति अत्यल्प आहार करती है।
आगम में उपर्युक्त तथ्य को स्वीकार करने पर सहज ही जो प्रश्न उठ सकता है उसे उठाते हुए गणधर गौतम श्री महावीर प्रभु से पूछते हैं“जइ णं भंते! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव्वप्पहारगा भवंति, कम्हा णं भंते! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया, पुम्फिया, फलिया हरियग - रेरिज्जमाणा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठन्ति ? गोयमा ! गिम्हासु णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य पोग्गला य वणस्सइकाइयत्ताए वक्कमंति चयन्ति उववज्जन्ति। एवं खलु गोयमा ! गिम्हासु बहवे वणस्सकाया पत्तिया, पुफिया जाव चिट्ठन्ति । " - भगवती शतक 7, उद्देशक 3, सूत्र 2
हे भगवन्! जब वनस्पतिकाय के जीव ग्रीष्म ऋतु में अत्यल्प आहार करते हैं तब फिर क्या कारण है कि ग्रीष्म ऋतु में बहुत-सी वनस्पतियाँ अधिक फलती, फूलती व हरीतिमा को प्राप्त होकर अपनी शोभा को बढ़ाती हैं? हे गौतम! ग्रीष्म ऋतु में (गर्मी की अनुकूलता के कारण ) बहुत से उष्णयोनिभूत जीव व पुद्गल वनस्पतिकाय रूप उपजते हैं, अधिकता से उपजते हैं, विशेष रूप से बढ़ते हैं, इसी कारण से ग्रीष्म ऋतु में बहुत से वनस्पतिकायिक पत्र, पुष्प आदि हरीतिमायुक्त होते हैं । " "
आगम के इस पूर्वोक्त कथन की पुष्टि वनस्पति विज्ञान - विशेषज्ञों द्वारा वनस्पति के आहार - संग्रह, प्रजनन आदि पर किए गए प्रयोगों से प्राप्त परिणामों से होती है। इन विशेषज्ञों का कथन है कि जब वर्षाकाल
1. भगवती सूत्र तृतीय खण्ड, पृष्ठ 12 (पं. बेचरदासजी कृत अनुवाद का हिन्दी रूपांतर)