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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य मक्का, बाजरा, ज्वार आदि अनाज के दाने योनिभूत बीज ही हैं और सचित्त (सजीव) हैं, जैन साधु इन जीवों को किसी प्रकार का कष्ट या संताप न हो एतदर्थ छूते भी नहीं हैं। आधुनिक वनस्पति विज्ञान इन्हें जीव स्वीकार करता है। खाद्य-विशेषज्ञ डॉ. पिंगले का कथन है-“अनाज भी एक जीवित प्राणी है और उसकी सुरक्षा आदमी की तरह ही करनी चाहिए।"
आगे आगमकार साधारण वनस्पतिकाय या निगोद जीवों का वर्णन करते हुए कहते हैं
एगस्स दोण्ह तिण्ह व, संखिज्जाण व ण पासिउं सक्का। दीसंति सरीराइं णिओयजीवाणंअणंताणं ।।
-पन्नवणा, प्रथम पद, गाथा 57 अर्थात् साधारण वनस्पतिकाय या निगोद के जीव इतने सूक्ष्म हैं कि वे चक्षु से अग्राह्य है और देखने में नहीं आते हैं तथा निगोद के भी एक, दो, तीन, संख्यात व असंख्यात जीवों का शरीर पिण्ड नहीं देखा जा सकता है परंतु अनंत जीवों का शरीर पिण्ड ही देखा जा सकता है।
जस्स मूलस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ।
अणंत-जीवे उ से मूले, जे आवण्णे तहाविहा। साहारणसरीरबायर-वणस्सइकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
अवए, पणए, सेवाले, लोहिणी, मिहूथिहूथिभगा। अस्सकण्णी सीहकण्णी, सिउंढी ततो मुसुंढी य॥1॥
-पन्नवणा, प्रथम पद, गाथा 10 एत्थ णं बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता, उववाएणं, सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइ भागे।
___-पन्नवणा, द्वितीय पद, सूत्र 89
1. नवभारत टाइम्स, 12 अगस्त 1967