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वनस्पति में संवेदनशीलता का पौधा मिठास का बड़ा शौकीन होता है इसलिए फूलों के मकरंदों में तथा अंगूर-सेव के छिलकों पर सफेदी की जो हल्की-सी परत छायी रहती है वह खमीर के पौधों का जंगल ही होता है।
खमीर अनेक जाति का होता है। इसकी एक जाति मनुष्य की त्वचा पर भी उग आती है। इसे अंग्रेजी में यीस्ट कहा जाता है।
“ग्रीष्म ऋतु में आटे के खट्टा हो जाने, शर्बत के खट्टे पड़ जाने में भी एक सेल वाली फफूंदी ही कारण है। पेनिसिलिन जैसी दवाएँ भी फफूंदी से ही बनती हैं।"
___ आशय यह है कि जीवाभिगम व पन्नवणा सूत्र में साधारण-निगोद वनस्पतिकाय की ऐसी जातियों का उल्लेख मिलता है जो न तो चक्षुओं से दिखाई ही देती है और न बुद्धि जिन्हें वनस्पति मानने को ही तैयार होती है तथापि आज उन्हें वनस्पति-विज्ञान ठीक उसी प्रकार की वनस्पति मानता है जैसा कि आगमों में उनका निरूपण है। यह इस बात का साक्षी है कि इन सूत्रों के प्रणेता निश्चय ही अंतर्द्रष्टा थे। विद्वान् इसे अपने शोध का विषय बनाकर आश्चर्यकारी परिणाम सामने ला सकते हैं। संज्ञा
जैनदर्शन वनस्पति को मात्र सजीव कहकर ही इतिश्री नहीं कर देता है अपितु इसकी प्रकृति, प्रवृत्ति, प्रभृति का पचासों प्रकार से वर्गीकरण कर विस्तार से प्रकाश डालता है। जीवों में संज्ञाएँ (इच्छाएँ) होती हैं। अत: आगमों में संज्ञाओं का समासीकरण करते हुए कहा गया है
1. नवनीत, मई 1960, पृष्ठ 33 2. प्रा. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 125