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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य वनस्पतिकाय के भेव
“वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमवणस्स-इकाइया य बायरवणस्सइकाइया या"
-पन्नवणा, प्रथम पद, सूत्र 27 अर्थात् वनस्पति के दो भेद हैं-सूक्ष्म वनस्पतिकाय और बादर वनस्पति काय।
बायरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता तं जहा-पत्तेयसरीर-बायरवणस्सइकाइया य, साहारणसरीर-बायरवणस्सइ-काझ्या या से किं तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया? पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा-रुक्खा, गुच्छा, गुम्मा, लया य वल्ली य पव्वगा, चेव तण-वलय-हरियओसहि-जलरुह-कुहणा य बोद्धव्वा। -पन्नवणा, पद प्रथम, सूत्र 29-30
बादर वनस्पतिकाय दो प्रकार की है, यथा-प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय और साधारण शरीर बादर वनस्पतिकाय। प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय के 12 भेद कहे हैं-(1) वृक्ष, (2) गुच्छ (3) गुल्म (4) लता (5) वल्ली (6) पर्वग (7) तृण (8) वलय (9) हरित (10) औषधि (11) जलरुह और (12) कुहण।
आधुनिक वनस्पति विज्ञान भी वनस्पति के उपर्युक्त वर्गीकरण को प्रायः पूरा का पूरा स्वीकार करता है। यही नहीं, पन्नवणासूत्र में उक्त प्रकरण में आये इन वनस्पतियों के उपभेदों को भी स्वीकार करता है। विस्तार के भय से यहाँ संक्षेप में ही उल्लेख किया जा रहा है।
प्रत्येक शरीरी जीव उसे कहा जाता है जो एक शरीर का स्वामी एक ही जीव हो अर्थात् प्रत्येक जीव का अपना शरीर पृथक्-पृथक् रखते हैं वे प्रत्येक शरीरी कहलाते हैं। ये प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकायिक जीव