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वनस्पति में संवेदनशीलता
___77 कई प्रकार की होती हैं। इसका विशेष वर्णन ‘आहार के प्रकार' प्रकरण में देखने को मिलेगा।
(5) प्रवर्धन (Growth)-जीवित पदार्थों के शरीर में वृद्धि होती है। पशु-पक्षी आदि जीवों के बच्चे बढ़कर बड़े होते हैं। यह वृद्धि आंतरिक होती है। इस वृद्धि में समय, आकार व आयतन की अधिकतम सीमा निश्चित होती है। यह गुण जड़ पदार्थों में नहीं पाया जाता है, केवल जीवित प्राणियों में ही पाया जाता है। वनस्पतियों में भी यह गुण विद्यमान है। वटवृक्ष का एक नन्हा-सा बीज अपनी आंतरिक शक्ति से बढ़कर विशाल वृक्ष बन जाता है। उसके फल, फूल, पत्ते एक निश्चित सीमा तक ही बढ़ते हैं। उसके फल बढ़कर न तो लौकी जैसे लम्बे ही होते हैं और न पैठे जैसे मोटे ही।
(6) श्वसन (Respiration)-जैनदर्शन के समान विज्ञान की भी यह मान्यता है कि विश्व के समस्त सजीव प्राणियों में श्वसन क्रिया विद्यमान है। इस विषय में वैज्ञानिकों का कथन है कि जीवित प्राणियों में सतत श्वसन क्रिया चलती रहती है। इस क्रिया के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। जीवों को इस शक्ति की प्राप्ति उनके द्वारा ग्रहण किए आहार से उत्पन्न ऑक्सीकरण से होती है। ऑक्सीकरण के परिणामस्वरूप कार्बन-डॉइ-ऑक्साइड बनती है। यह एक विषैली गैस है जिसे शरीर से बाहर निकालना आवश्यक है। प्राणी हवा से ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए श्वॉस लेता है और उच्छ्वास के रूप में कार्बन-डॉइ
ऑक्साइह शरीर से बाहर फेंकता है। जीवविज्ञान शास्त्र में इसी श्वासोच्छ्वास प्रक्रिया को श्वसन कहा जाता है। त्रस जीवों में यह क्रिया श्वसन-संस्थान (फेफड़े, गलफड़े आदि) द्वारा होती है और वनस्पति के