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जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
पुनः खिल उठती है। सनड्यू और वीनस - फ्लाइट्रेप के पौधे अपने फूलों पर कीट पतंगों के बैठते ही उन्हें अपने नागपाश में बांध लेते हैं। इस शिकार क्रिया की फुर्ती इतनी चमत्कारिक होती है कि एक सैकेण्ड के शतांश में ही खेल खत्म हो जाता है। '
( 3 ) शारीरिक गठन (Organisotion) - जीवधारियों के शरीर का गठन किसी विशेष व निश्चित आकार-प्रकार और रूप-रंग का होता है। एक ही जाति के जीव-जंतु रूप व आकार में एक से होते हैं, किंतु निर्जीव वस्तुओं में यह बात नहीं होती है। उदाहरणार्थ - निर्जीव कागज को लीजिये । वह किसी भी आकार-प्रकार, रूप-रंग का व छोटा-बड़ा हो सकता है परंतु सजीव कुत्ता न तो चीता के बराबर बड़ा ही और न चींटी के बराबर छोटा ही हो सकता है। साथ ही कुत्तों के शरीर का गठन व आकृति एक-सी व अन्य प्राणियों से भिन्न होती है। इसी प्रकार वनस्पतियाँ भी अपना निश्चित प्रकार का शारीरिक गठन, रूप व आकार रखती हैं अर्थात् एक जाति की वनस्पति का रूप, पत्ते, फल, फूल आदि का गठन एक-सा होता है।
(4) भोजन और उसका स्वीकरण (Food and its assimilation)-प्रत्येक जीव शारीरिक शक्ति, वृद्धि व क्षतिपूर्ति के लिए भोजन करता है। भक्षित पदार्थों को शारीरिक तत्त्वों के रूप में परिणमन कर उसे शरीर का अंग बना लेने की क्रिया को स्वीकरण या अंगीकरण कहते हैं। यह क्रिया जीवधारी में ही पाई जाती है, जड़ वस्तु में नहीं । वनस्पति में यह क्रिया प्रत्यक्ष देखी जाती है। वह मिट्टी, पानी, पवन आदि से भोजन ग्रहण कर शक्ति प्राप्त करती व अंगों को पुष्ट करती है। यही नहीं, अन्य प्राणियों के समान वनस्पतियाँ भी दुग्धाहारी, निरामिषाहारी, मांसाहारी आदि
1. विज्ञान लोक, अप्रैल 1962, पृष्ठ 14