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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य पत्रों आदि द्वारा होती है। हवा या जल के अभाव में अन्य प्राणियों के समान वनस्पति में भी श्वसन क्रिया में अवरोध उत्पन्न होने पर वह मुरझा कर मर जाती है। वनस्पति में श्वसन-क्रिया होती है, इसे निम्नांकित प्रयोगों में देखा जा सकता है।
प्रयोग 1.-काँच के जार में कोई पौधा रखिये। उसे किसी बड़े बेलजार से ढंकिए। बेलजार के अंदर एक काँच के गिलास में चूने का साफ पानी भरकर रख दीजिए। बेलजार को काले कपड़े से ढंककर रातभर पड़ा रहने दीजिए। प्रात: चूने के पानी को हिलाकर देखेंगे तो वह दूधिया होगा। इसके दूधिया होने का कारण पौधे के उच्छ्वास द्वारा छोड़ी गई कार्बन-डॉइ-ऑक्साइड गैस ही है।
__प्रयोग 2.-शीशे की चौड़े मुँह वाली बोतल में थोड़े से अंकुरित चने भरकर डाट इस प्रकार बंद कर दीजिये कि हवा उसमें न जा सके। उसे अंधेरे में रख दीजिये। इसी प्रकार बोतल में कुछ अंकुरित चनों को पानी में उबालने के बाद भरकर उसी प्रकार रख दीजिये। दूसरे दिन पहली बोतल को खोलकर उसमें जलता हुआ पतीला छोड़िये। पतीला तुरंत बुझ जायेगा। दूसरी बोतल में भी ऐसा ही कीजिये। इसमें पतीला जलता रहेगा। इसका कारण यह है कि पहली बोतल में जो अंकुरित चने थे, वे जीवित थे। अत: उनकी श्वासोच्छ्वास क्रिया द्वारा कार्बन-डॉइ-ऑक्साइड गैस उत्पन्न हुई और इसी गैस की विद्यमानता से उसमें पतीला बुझ गया। दूसरी बोतल में जो अंकुरित चने थे वे उबाले जाने से मृत हो गये थे। इसलिए उसमें श्वासोच्छ्वास नहीं हुआ और कार्बन-डॉइ-ऑक्साइड गैस पैदा नहीं हुई। इसीलिए पतीला जलता रहा। इससे सिद्ध होता है कि जीवित पौधों में श्वासोच्छ्वास क्रिया होती है, मृत में नहीं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जैनागमों में