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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य आज सत्य सिद्ध कर दिया है। यहाँ पहले स्थावरकाय के प्रथम भेद पृथ्वीकाय पर विचार करते हैं।
पृथ्वीकााय के जीवों की अवगाहना कितनी है? गणधर गौतम द्वारा पूछे गये इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान महावीर फरमाते हैं
गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेण वि अंगुलासंखेज्जइभाग।
-जीवाभिगम प्रथमप्रतिपत्ति। हे गौतम ! पृथ्वीकाय के जीवों की अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग है। दूसरे शब्दों में सुई की नोक बराबर पृथ्वीकाय के भाग में असंख्य जीव होते हैं। यह बात पहले अन्य दार्शनिकों को हास्यास्पद लगती थी कारण कि उनकी दृष्टि में पृथ्वी अचला, स्पन्दनहीन, जड़ व निर्जीव रही है। परंतु वैज्ञानिक यंत्रों के विकास ने जैन दर्शन में प्रतिपादित इस सिद्धांत को सत्य सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी सजीव है।
विश्व विख्यात वैज्ञानिक जूलियस हक्सले ने अपनी लेखमाला'पृथ्वी का पुनर्निर्माण' (Remaking the Earth) में पृथ्वी से संबंधित अनेक रहस्यों व तथ्यों का उद्घाटन किया है, वह आश्चर्यकारी है। वे पृथ्वी का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि पेंसिल की नोक से जितनी मिट्टी उठ सकती है उसमें दो अरब से अधिक कीटाणु होते हैं। उनके कथनानुसार पेंसिल की नोक के अग्रभाग जितनी मिट्टी में जीवों की संख्या विश्व के समस्त मनुष्यों की संख्या से कुछ ही कम है। परंतु इससे भी अधिक महत्त्व की बात है-अन्य सजीव प्राणियों के समान मिट्टी का भी जन्म, वर्द्धन व मरण होता है। विज्ञान जगत् में आज यह सामान्य सिद्धांत बन गया है।